दोस्तो इस ब्लॉग में हम मराठा साम्राज्य के बारे देखेंगे की मराठा साम्राज्य का उदय कैसे हुआ फिर शिवाजी महाराज, उनके सैन्य प्रशासन और उनके द्वारा लड़े गए महत्वपूर्ण लड़ाईयों के बारे जानकारी लेंगे।
Shivaji Maharaj |
मराठा साम्राज्य का उदय
- शिवाजी के आदि पूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया वंश के थे।
- 14 वीं शताब्दी में सज्जन सिंह नामक व्यक्ति अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय मेवाड़ से निकलकर महाराष्ट्र आए और इन्होंने मराठा साम्राज्य की नीव रखीं थी।
- इस वंश की पांचवी पीढ़ी में उग्रसेन नामक व्यक्ति हुए जिनके दो पुत्र कर्ण सिंह व शुभकरण हुए।
- शुभकरण ने मराठों में भोसले वंश की स्थापना की थी।
- शुभकरण के वंशज भोसले कहलाए थे।
- इनके पौत्र बालाजी भोसले हुए। बालाजी भोसले के दो पुत्र मालोजी व विठ्ठोजी हुए। ये लखुजी जाधव जो कि एक गाय पालक के पास नौकरी करते थे। मालोजी अहमदनगर के सुल्तान मलिक अम्बर के वहां नौकरी करते थे।
- 15 मार्च 1590, को मालोजी का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शाहजी रखा गया था।
- शाहजी का विवाह 1605 ई में जीजाबाई से हुआ। जीजाबाई लखुजी जाधव की पुत्री थी।
- 1620 ई में मालोजी की मृत्यु हो गई और शाहजी उत्तराधिकारी नियुक्त हुए थे।
- शाहजी का लखुजी जाधव से मतभेद हो गया था। और 1620 में शाहजी, जहांगीर के दरबार में गए। इस प्रकार जहांगीर के समय मराठे पहली बार मुगलों की सेवा में 1620 में गए। जहांगीर ने इन्हें सर्वप्रथम उमरा वर्ग में शामिल किया। लेकिन कुछ समय बाद ये अहमदनगर लौट आए।
- 1624 ई में भातवाड़ी या मारवाड़ी का युद्ध हुआ था।
- 1624 में अहमदनगर व मुगलों के बीच युद्ध हुआ, जिसमें शाहजी ने अहमदनगर की ओर से भाग लिया और अहमदनगर के शासक मलिक अम्बर विजयी हुए।
- यह युद्ध लखुजी जाधव ने मुगलों की ओर से लड़ा था।
- सन् 1630 में शाहजी, शाहजहां के दरबार में गए। शाहजहां ने इनको 5000 रूपये का मनसबदार बनाया था। लेकिन 1632 में ये पुनः अहमदनगर लौटे व बीजापुर गए थे।
- सन् 1632 में बीजापुर के शासक मुर्तजा प्रथम की हत्या कर दी गई और शाहजी ने उसके 10 साल के बेटे मुर्तजा द्वितीय को शासक बनाया और खुद प्रशासन करने लगे।
- शाहगढ़ को नए सुल्तान की राजधानी बनाया गया।
- धीरे-धीरे बीजापुर में शाहजी का कद काफी बढ़ गया और बीजापुर का शासक ही शाहजी से चिढ़ने लगा।
- शाहजी को 1647 में बीजापुर के सुल्तान द्वारा कैद कर लिया गया था।
- 1664 में शाहजी की मृत्यु हो गई थी।
शिवाजी महाराज
- शिवाजी महाराज मराठा साम्राज्य के संस्थापक थे।
- शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल 1627 ई में पूना में, शिवनेर दुर्ग में हुआ था।
- इनके पिता का नाम शाहजी भोसले था।
- इनकी माता का नाम जीजाबाई था।
- इनकी पत्नी का नाम साईंबाई निम्बालकर और तुकाबाई मोहिते था।
- इनके पुत्र का नाम राजाराम व शम्भाजी था।
- शिवाजी का राज्याभिषेक 1674 को बनारस के विद्वान गंगाभट्ट द्वारा करवाया गया था।
- शिवाजी के राजनैतिक गुरु का नाम कोंडदेव व आध्यात्मिक गुरु का नाम रामदास था।
- मराठों की राजभाषा मराठी थी।
- शिवाजी के बड़े बेटे शम्भाजी थे, जिनकी मृत्यु 1654 में पोलीगर के युद्ध में हो गई थी।
- शिवाजी पर सर्वाधिक प्रभाव कोंडदेव का था। कोंडदेव शिवाजी के संरक्षक भी थे।
- आध्यात्मिक क्षेत्र में शिवाजी के आचरण पर गुरु रामदास का काफी प्रभाव था।
- रामदास ने दासबोध और आनन्दवन भवन नामक पुस्तकें लिखी थी।
- समर्थ रामदास ने मराठा धर्म का प्रतिपादन किया था।
- शिवाजी का विवाह साईंबाई निम्बालकर से 1640 ई में हुआ था। जिससे शिवाजी के उत्तराधिकारी शम्भाजी का जन्म हुआ था।
- शाहजी ने शिवाजी को 1643 में पूना की जागीर प्रदान कर स्वयं बीजापुर रियासत में नौकरी कर ली।
- शिवाजी ने अपने पिता की जागीर के प्रशासक के रूप में पुणे में प्रारंभ किया था।
- शिवाजी के प्रारम्भिक सैन्य अभियान बीजापुर के आदिलशाही राज्य के विरूद्ध शुरू किए थे।
- 1643 ई में शिवाजी ने सर्वप्रथम सिंहगढ़ का किला जीता था।
- 1646 ई में इन्होंने बीजापुर के तोरण व मुब्बगढ़ का किला जीता था।
- 1647 ई में इन्होंने कोण्डाना व चाकन पर विजय प्राप्त की थी। इसी विजय के बाद बीजापुर के सुल्तान ने शाहजी को बंदी बना लिया था।
- 1654 ई में इन्होंने पुरन्दर का किला जीता, जो पहले बीजापुर के अधीन था। यहां का किलेदार नीलोजी नीलकंठ था।
- 1656 ई में शिवाजी ने जुन्नार किले की विजय प्राप्त की थी। यहां से इन्हें बहुत अधिक धन प्राप्त हुआ।
- 1656 ई में शिवाजी ने रायगढ़ को अपनी राजधानी बनाया था।
- शिवाजी ने पहली बार मुगलों से (औरंगजेब) 1657 में युद्ध किया, जिसमें शिवाजी की हार हो गयी थी।
- 1657 ई में शिवाजी ने कोंकण क्षेत्र की विजय की थी।
- शिवाजी को राजा की पदवी औरंगजेब ने दी थी।
अफजल खां से संघर्ष (1659)
- बीजापुर के सुल्तान ने अपने योग्य सेनापति अफजल खां को सितंबर 1659 ई में शिवाजी को कैद करने या मारने के लिए भेजा था।
- उसने अपने दूत कृष्ण जी भास्कर को शिवाजी के पास भेजा व मिलने की इच्छा व्यक्त की थी।
- वार्ता के लिए प्रतापगढ़ का जंगल चुना गया था। जहां शिवाजी ने अफजल खां की हत्या कर दी थी।
शाइस्ता खां से संघर्ष (1663)
- सन् 1660 में औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खां को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया और शिवाजी को खत्म करने का आदेश दिया।
- सन् 1663 में शिवाजी ने शाइस्ता खां को पराजित किया और उसके पुत्र फतेह खां की हत्या कर दी।
- शिवाजी ने सूरत को 1664 ई एवं 1670 ई में लूटा था।
- प्रथम लूट में करीब 1 करोड़ रूपये प्राप्त हुए।
- इस समय सूरत की अंग्रेज कोठी का अध्यक्ष सर जॉर्ज ऑक्साईडन था।
पुरंदर की संधि (22 जून 1665)
- शाइस्ता खां के बाद राजा जयसिंह को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया गया था।
- जिससे शिवाजी को संधि के लिए बाध्य होना पड़ा।
- तीन दिनों तक वार्ता के बाद पुरन्दर की संधि सम्पन्न हुईं थी।
- पुरन्दर की संधि 1665 में महाराजा जयसिंह एवं शिवाजी के मध्य सम्पन्न हुईं थी।
- इस संधि के अनुसार शिवाजी ने अपने 35 किलों में से 23 किले मुगलों को दे दिए।
- शिवाजी मुगलों की ओर से युद्ध और सेवा करेंगे।
- शिवाजी 12 मई 1666 को आगरा दरबार पहुंचे थे।
- राजा जयसिंह के पुत्र रामसिंह ने शिवाजी की सुरक्षा की गारंटी ली थी।
- दरबार में इन्हें 5000 के मनसबदारों की लाइन में खड़ा किया गया, जिससे शिवाजी नाराज हो गए और शिवाजी का औरंगजेब से फिर से संघर्ष शुरू हो गया।
- शिवाजी को औरंगजेब ने मई 1666 में जयपुर भवन में कैद कर लिया, जहां से वे 16 अगस्त 1666 ई में भाग निकले।
- दक्षिण के सूबेदार मुअज्जम के माध्यम से 1668 में शिवाजी ने औरंगजेब से संधि का प्रस्ताव रखा और औरंगजेब संधि के लिए तैयार हो गया था।
- इसी समय सन् 1668 में शिवाजी को औरंगजेब ने राजा की उपाधि दी और संधि की जिसमें उसने शिवाजी को बीजापुर व गोलकुण्डा से चौथ वसूलने का अधिकार दे दिया था।
सूरत की लूट (1670)
- इस लूट में शिवाजी को लगभग 66 लाख रूपये की सम्पत्ति प्राप्त हुई थी।
- इसमें एक सोने की पालकी भी थी जो किसी ने औरंगजेब को भेंट के लिए बनाई थी।
- सूरत की लूट से लौटते समय शिवाजी का मुगल सेना से सामना हुआ था।
- मुगल सेना का नेतृत्व दाऊद खां व इखलास खां कर रहे थे। शिवाजी लूट का माल सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में सफल हुए।
- इस युद्ध का वास्तविक स्थान कंचन-मंचन का दर्रा महाराष्ट्र में था।
- 1673 में शिवाजी ने पन्हाला दुर्ग को बीजापुर से छीना। यहां का किलेदार बाबू खां युद्ध में मारा गया था।
शिवाजी का राज्याभिषेक (06 जून 1674)
- 6 जून 1674 को शिवाजी ने रायगढ़ में वाराणसी के प्रसिद्ध विद्वान श्री विश्वेश्वर भट्ट या गंगाभट्ट से अपना राज्याभिषेक करवाया तथा छत्रपति की उपाधि धारण की।
- मूल रूप से गंगा भट्ट महाराष्ट्र के एक सम्मानित ब्राह्मण थे, जो लंबे समय से वाराणसी में रह रहे थे। ये शिवाजी के राजपुरोहित भी थे। इस अवसर पर हेनरी ऑक्साइडन भी उपस्थित था ।
- इस अवसर पर शिवाजी का, दूसरी पत्नी सोयराबाई के साथ पुनः विवाह हुआ। जिससे इनका पुत्र राजाराम का जन्म हुआ था।
- शिवाजी हैन्दवधर्मोधरक (छत्रपति) की पदवी के साथ के सिंहासन पर बैठे थे।
- 17 जून 1674 को शिवाजी की माता जीजाबाई का देहान्त हो गया, परिणामस्वरूप शिवाजी का दूसरी बार राज्याभिषेक हुआ था।
- दूसरा राज्याभिषेक 24 सितंबर 1674 को संपन्न हुआ। इसे निश्चलपुरी गोसाईं नामक व्यक्ति ने संपन्न कराया था।
कर्नाटक अभियान (1676–78 ई)
- कर्नाटक अभियान शिवाजी का अन्तिम अभियान था।
- जिसमें शिवाजी ने जिंजी का किला 1678 ई में जीता। यहां का किलेदार अब्दुल्ला हब्सी था।
- जिंजी की विजय शिवाजी की अन्तिम विजय थी।
- मात्र 53 वर्ष की आयु में 3 अप्रैल 1680 को शिवाजी की मृत्यु हो गई।
- इनका अन्तिम संस्कार राजाराम ने सम्पन्न किया।
- शिवाजी की सात पत्नियां थी, उनकी एक पत्नी पुतलीबाई ने उनकी मृत्यु के बाद सती हो गई।
शिवाजी का प्रशासन
- शिवाजी का साम्राज्य स्वराज्य (अपना राज्य) एवं मुल्द-ए-कादिम (पुराना प्रदेश) नामक दो भागों में विभक्त था।
अष्टप्रधान परिषद्
- शिवाजी के मंत्रिमंडल को अष्टप्रधान कहा जाता था। अष्टप्रधान में पेशवा का पद महत्वपूर्ण एवं सम्मान का होता था।
- अष्टप्रधान में निम्न पद थे।
- पेशवा (प्रधानमंत्री) - राज्य का प्रशासन एवं अर्थव्यवस्था की देख-रेख करने वाला
- सरी-ए-नौबत (सेनापति)सैन्य प्रधान था। सेना की भर्ती करना, संगठन व उनकी आवश्यकता की पूर्ति करना इसका कार्य था ।
- अमात्य (राजस्व या वित्त मंत्री) - आय व्यय का लेखा जोखा रखने वाला।
- वाकयानवीस (गृहमंत्री)- यह दरबारी लेखक था। कानून व्यवस्था, सूचना, गुप्तचर एवं संधि विग्रह के विभागों का अध्यक्ष था।
- चिटनिस - राजकीय पत्रों को पढ़कर उसकी भाषा शैली को देखना वाला।
- सुमन्त- विदेश मंत्री।
- पंडित राव- दान व धार्मिक कार्यों के लिए
- न्यायाधीश- न्याय विभाग का प्रधान
- शिवाजी की दरबारी भाषा व राजभाषा मराठी थी।
- मराठी शब्दकोष की रचना रघुनाथ पंडित हनुमंत ने की थी।
भू-राजस्व व्यवस्था
- शिवाजी की कर व्यवस्था मलिक अम्बर की कर व्यवस्था पर आधारित थी।
- शिवाजी ने रस्सी द्वारा माप की व्यवस्था के स्थान पर काठी एवं मानक छड़ी के प्रयोग को आरंभ किया।
- शिवाजी के समय कुल उपज का 33(1/3) प्रतिशत भाग राजस्व के रूप में वसूला जाता था। जो बढ़ कर 40 प्रतिशत तक हो गया था।
- चौथ एवं सरदेशमुखी नामक कर शिवाजी के द्वारा लगाया गये थे।
- चौथ - किसी एक क्षेत्र को बरबाद न करने के बदले दी जाने वाली रकम को कहा गया है। जिसे ये पड़ोसी राज्य से लेते थे।
- सरदेशमुखी - इसको भी शिवाजी दूसरे राज्यों से वसूलते थे। इसको हक का दावा करके शिवाजी स्वयं को श्रेष्ठ देशमुख प्रस्तुत करना चाहते थे।
सैन्य प्रशासन
- शिवाजी की सेना तीन महत्वपूर्ण भागों में विभक्त थी।
- पागा या बागीर सेना - नियमित घुड़सवार सैनिक। ये शाही घुड़सवार थे। जिन्हें राज्य की ओर से शस्त्र मिलते थे।
- सिलहदार - अस्थायी घुड़सवार सैनिक थे। इन्हें घोड़े एवं शस्त्र स्वयं खरीदने पड़ते थे।
- पैदल - यह एक पैदल सेना थी।
न्याय प्रशासन
- शिवाजी का न्यायालय मजलिस कहलाता था, जिसे सभा भी कहा जाता था।
- अपने जीवन काल में शिवाजी ने 240 किलों का निर्माण कराया था।
- शिवाजी के आदि पूर्वज मेवाड़ के सिसोदिया वंश के थे।
- 14 वीं शताब्दी में सज्जन सिंह नामक व्यक्ति अल्लाउद्दीन खिलजी के आक्रमण के समय मेवाड़ से निकलकर महाराष्ट्र आए और इन्होंने मराठा साम्राज्य की नीव रखीं थीं।
- इस वंश की पांचवी पीढ़ी में उग्रसेन नामक व्यक्ति हुए जिनके दो पुत्र कर्ण सिंह व शुभकरण हुए।
- शुभकरण ने मराठों में भोसले वंश की स्थापना की थी।
- शुभकरण के वंशज भोसले कहलाए।
- इनके पौत्र बालाजी भोसले हुए। बालाजी भोसले के दो पुत्र मालोजी व विठ्ठोजी हुए। ये लखुजी जाधव जो कि एक गाय पालक के पास नौकरी करते थे। मालोजी अहमदनगर के सुल्तान मलिक अम्बर के वहां नौकरी करते थे।
- 15 मार्च 1590 को मालोजी का एक पुत्र हुआ, जिसका नाम शाहजी रखा गया था।
- शाहजी का विवाह 1605 में जीजाबाई से हुआ। जीजाबाई लखुजी जाधव की पुत्री थी।
- 1620 में मालोजी की मृत्यु हो गई व शाहजी उत्तराधिकारी हुए।
- शाहजी का लखुजी जाधव से मतभेद हो गया और 1620 में शाहजी, जहांगीर के दरबार में गए थे। इस प्रकार जहांगीर के समय मराठे पहली बार मुगलों की सेवा में 1620 में गए। जहांगीर ने इन्हें सर्वप्रथम उमरा वर्ग में शामिल किया। लेकिन कुछ समय बाद ये अहमदनगर लौट आए।