उत्तराखण्ड में चंद राजवंश का इतिहास (History of Chand Dynasty in Uttarakhand)
उत्तराखंड के इतिहास का क्रमबद्ध वृतांत सर्वप्रथम एटकिंसन द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इसके बाद उत्तराखंड पर जो कुछ भी लिखा गया है इसमें एटकिंसन के लेखन की पुनरावृत्ति ही देखने को मिलती है। एटकिंसन कीट वैज्ञानिक थे। इनका पूरा नाम एडविन फेलिक्स थॉमस एटकिंसन था। एटकिंसन का जन्म आयरलैंड में 6 सितंबर 1840 में हुआ था। और इनकी मृत्यु- 15 सितंबर 1890 कोलकाता में हुई। कत्यूरी वंश के पश्चात् कुमाऊं में जिस वंश का शासन शुरू हुआ वह चंद वंश था। चंद वंश के इतिहास को जानने के लिए पुरातात्विक, साहित्यिक एवं लोकगाथाएं उपलब्ध हैं।
बालेश्वर मन्दिर से प्राप्त क्राचल्लदेव का लेख, बास्ते ताम्रपत्र (पिथौरागढ़) आनंदपाल, गोपेश्वर का त्रिशूल लेख, बोधगया शिलालेख, लोहाघाट एवं हुडैती अभिलेख (पिथौरागढ), गड्यूड़ा ताम्रपत्र (चंपावत), विजयचंद का पाभै ताम्रपत्र (पिथौरागढ), कालापानी-गाड़भेटा से प्राप्त कल्याण चंद का ताम्रपत्र, खेतीखान ताम्रपत्र, सीरा से प्राप्त 1353 ई० हुआ था और 1357 ई० के मल्ल के ताम्रपत्र से भी चंद वंश के इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है। सरा-खड़कोट (पिथौरागढ़) एवं मझेड़ा ताम्रपत्र (पिथौरागढ़) से चन्दों के बम शासकों से जानकारी प्राप्त होती है। बास्ते ताम्रपत्र में मांडलिक राजाओं की लम्बी सूची दी गई है। मूनाकोट ताम्रपत्र (पिथौरागढ़), बरम से प्राप्त ताम्रपत्र, झिझाड़ ताम्रपत्र, लखनऊ संग्रहालय के ताम्रपत्र महत्वपूर्ण हैं। राजा के महल को चौमहल कहा जाता था। सौर शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग आनंदपाल के बास्ते अभिलेख (पिथौरागढ़) में मिलता है। विजय बम का मझेड़ा ताम्रपत्र मझेड़ा गांव (चंडाक पिथौरागढ़) से प्राप्त हुआ है। चंद राजाओं की दो वंशावलियां अल्मोड़ा व सीरा से प्राप्त हुई हैं।
चंदो राजाओं की राजधानी(Capital of Chanda kings)
इनकी प्रारम्भिक राजधानी चंपावती नदी के तट पर बसी चंपावत नगरी थी। द्वितीयक राजधानी देवीसिंह के समय इनकी राजधानी देवीपुर (अल्मोड़ा) भी रही। बालो कल्याण चंद के समय राजधानी को पूर्ण रूप से अल्मोड़ा में स्थापित किया गया। इनकी ग्रीष्मकालीन राजधानी बिनसर थी। तथा प्रशासनिक भाषा कुंमाऊनी और कुल देवी नंदा देवी थी।
62 चंद राजाओं का कालक्रम (Chronology of 62 Chanda kings)
1. सोमचंद (700-721 ई)2. आत्म चंद (721-740 ई)
3. पूर्ण चंद (740-758 ई)
4. इंद्र चंद (758-778 ई)
5. संसार चंद (778-813 ई)
6. सुधा चंद (813-833 ई)
7. हमीर चंद/हरिचंद (833-856 ई)
8. वीणा चंद (856-869 ई)
9. वीर चंद (1065-1080 ई)
10. रूप चंद (1080-1093 ई)
11. लक्ष्मी चंद (1093-1113 ई)
12. धर्म चंद
13. कर्म चंद
14. कल्याण चंद
15. नामी या निर्भय चंद
16. नर चंद
17. नानकी चंद
18. राम चंद
19. भीष्म चंद
20. मेघ चंद
21. ध्यानचंद
22. पर्वत चंद
23. थोहर चंद (1261-1275 ई)
24. कल्याण चंद
25. त्रिलोक चंद (1296-1303 ई)
26. डमरू चंद
27. धर्म चंद
28. अभय चंद (1344-1374 ई)
29. ज्ञानचंद या गरूड़ ज्ञानचंद (1374-1419 ई)
30. हरिहर चंद या हरिचंद (1419-1020 ई)
31. उद्यान चंद (1420-1421 ई)
32. आत्मचंद द्वितीय (1421-1422 ई)
35. भारती चंद (1437-1450 ई)
36. रत्न चंद (1450-1488 ई)
39. ताराचंद
40. मानिक चंद
41. कल्याण चंद तृतीय
42. पुनी चंद या पूर्ण चंद
43. भीष्म चंद (1555-1560 ई)
44. बालो कल्याण चंद (1560-1568 ई)
45. रूद्र चंद (1568-1597 ई)
46. लक्ष्मीचंद (1597-1621 ई)
47. दिलीप चंद (1621-1624 ई)
48. विजय चंद (1624-1625 ई)
49. त्रिमल चंद (1625-1638 ई)
50. बाजबहादुर चंद (1638-1678 ई)
51. उद्योत चंद (1678-1698 ई)
52. ज्ञान चंद (1698-1708 ई)
53. जगत चंद (1708-1720 ई)
54. देवी चंद (1720-1726 ई)
55. अजीत चंद (1726-1729 ई)
56. कल्याण चंद चतुर्थ (1729-1747 ई)
57. दीप चंद (1747-1777 ई)
58. मोहन चंद (1777-1779 ई)
59. प्रद्युम्न शाह (1779-1786 ई)
60. मोहन चंद (द्वितीय कार्यकाल) (1786-1788 ई)
61. शिव सिंह (शिव चंद) (1788 ई)
62. महेन्द्र चंद (1788-1790 ई)
चंद वंश में निम्न राजा हुए-
सोम चंद(Som Chand)(700-721 ई)
- चंद वंश का संस्थापक सोमचंद था जिसने इस वंश की स्थापना लगभग 700 ई० में की थी।
- कुछ विद्वान चंद वंश की स्थापना का वर्ष 1025 ई भी मानते हैं।
- एटकिंशन व बद्रीदत्त पांडे सोमचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते हैं। जबकि हर्षदेव जोशी, फेजर साहब, यशवंत कठौच व हैमिल्टन थोहरचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते हैं।
- इलाहाबाद के समीप झूंसी नामक स्थान का रहने वाला था।
- झूंसी चंद वंश की राजधानी प्रतिष्ठान है।
- सोमचंद ज्योतिषियों के कहने पर बद्रीनाथ की यात्रा पर आया था।
- सोमचंद के आगमन के समय कुमाऊँ में कत्यूरी नरेश ब्रह्मदेव का आधिपत्य था।
- टनकपुर नेपाल के मध्य महादेव मण्डी महादेव की देन है।
- ब्रह्मदेव ने सोमचंद से प्रभावित होकर अपनी पुत्री रमा का विवाह उससे कर दिया तथा दहेज में 15 बीघा जमीन दान दे दी थी।
- उसने चंपावती देवी के नाम पर बसे चपावत को राजधानी बनाकर धीरे धीरे राज्य का विस्तार करना प्रारंभ किया।
- इस समय सम्पूर्ण काली कुमाऊँ में अनेक खश, नाग, द्रविड़, मेद, चांडाल आदि ठकुरातियों का शासन था।
- ये सभी दो धड़ मल्लाधड़ व तल्लाधड़ में विभक्त थे। मल्लाधड़ के मुख्या मेहरा व तल्ला धड़ के मुख्या फर्त्याल थे।
- मेहरा व फल्योलों को उसने मंत्री व सेनापति बनाया था।
- मेहरा लोग कोटालगढ़ व फर्त्याल लोग डुंगरी में रहते थे। राज्य की सारी राजनीति इन्हीं दो धड़ों के हाथों में थी।
- सोमचंद ने चम्पावत में राजबूगा नामक किला बनवाया। जो अंडाकार आकृति में बना है।
- नोट- बुंगा का स्थानीय भाषा में अर्थ किला होता है।
- नोट- चारान उचार किले का निर्माण भी सोमचंद ने कराया था।
- सोमचंद के समय डोटी के राजा जयदेव मल्ल था।
- सोमचंद ने सर्वप्रथम चार किलेदार नियुक्त किए थे- कार्की, बोहरा, तड़ागी व चौधरी थे।
- ये मूलतः नेपाल के निवासी थे।
- ये किलों में रहते थे। जिन्हें चार आल कहा जाता था।
- सोमचंद ने अपने फौजदार कालू तड़ागी की सहायता से चंपावत के स्थानीय रावत राजा (खश राजा) को परास्त किया और चंपावत के निकट के गांवों पर अधिकार कर लिया।
- कालू तड़ागी सोमचंद का सेनापति था।
- रावत राजा का किला राजबुंगा से आधे मील की दूरी पर था। जिसे वर्तमान में कोतवाल चबूतरा कहते हैं। उसी के समीप पितरौड़ा व पितरूढुंगा बना है।
- सोमचंद ने सुनानिधि चौबे को दीवान बनाया था।
- शिमल्टिया पांडों को राजगुरू, देवलिया पांडों को पुरोहित, मंडलिया पंडों को कारबारी व बिष्टों को कारदार बनाया।
- ब्राह्मण चौथानी कहलाये। और चौथानी ब्राह्मणों के अंतर्गत तिवारी, सिमल्टिया पांडे, बिष्ट और देवलिया पांडे लोग आते थे।
- सोमचंद शिव का उपासक था।
- सोमचंद एक छोटा सा मांडलिक राजा था जो डोटी के राजा जयदेव मल्ल को कर दिया करता था।
- डोटी के राजा मल्लवंशी थे वे रैका राजा या राई राजा कहलाते थे।
- कुमाऊं में पंचायती राज व्यवस्था सोमचंद द्वारा शुरू की गयी।
- ऐसा माना जाता है कि कुमाऊं में ऐंपण कला की शुरूआत सोमचंद के समय से हुयी। सोमचंद ने ग्रामों में बूढों व सयानों की नियुक्ति की थी।
आत्म चंद(Atmchand) (721-740 ई)
- सोमचंद के पश्चात् आत्मचंद गद्दी पर बैठा। इसने लगभग 19 वर्षों तक शासन किया।
- इसके पश्चात् पूर्णचंद गद्दी पर बैठा। जिसने 18 वर्षो तक शासन किया था।
पूर्ण चंद(Pooran Chand)(740-758 ई)
- इनके बारे में कहा जाता है कि ये शिकार के बड़े शौकीन थे। और अपना समय राजकाज में न लगाकर तराई भाबर में शिकार खेलने में खर्च करते थे।
- ये अपना राजकाज इंद्रचंद को देकर पूर्णागिरि की सेवा में चले गये थे।
इन्द्र चंद(Indra Chand) (758-778 ई)
- इंद्रचंद बहुत घमंडी राजा था जो स्वयं को इंद्र के समान समझता था।
- इन्द्रचंद ने रेशम उत्पादन व उससे रेशमी वस्त्र बनाने का कार्य प्रारम्भ किया और रेशम का कारखाना स्थापित किया जो अंग्रेजी शासन काल तक रहा।
- रेशम के उत्पादन व व्यापार से चंद राज्य की आय में वृद्धि हुई।
- रेशम बुनने का कार्य पटुवे करते थे। ये कुछ रेशम को सफेद रखकर बाकी को रंग देते थे। रंगते समय कोई झूठी खबर नगर में फैलाते थे। पटुवे कहते थे कि झूठी खबर फैलने से रेशम का रंग पक्का व सुंदर होता था।
- चंपावती नगर में झूठी खबर जो फैलती थी उसे पटरंगवाली कहते थे।
- इसके राज्य में सौंग जांग गांपों की रानी 7 वीं शताब्दी में रेशम के कीड़ों को चीन से लाई थी।
- इंद्रचंद के बाद के शासक संसारचंद, सुधाचंद, हरिचंद, वीणाचंद थे।
सुधा चंद(Sudha chand) (813-833 ई)
- इन्होंने शासन में बहुत से सुधार किये थे।
- सुधा चंद ने फौजी खर्च घटाया था।
- प्रजा को करों के भार से मुक्त कराया था।
वीणा चंद(Veena Chand) (856-869 ई)
- वीणा चंद एक विलासी राजा था। जिसका फायदा उठाकर खशों ने कुमाऊं पर अधिकार कर लिया।
- खशों का शासन लोकप्रिय नहीं था। इनके शासन में जनता का उत्पीड़न होता था।
- वीणा चंद के समय कुमाऊँ की सत्ता 196 वर्षों तक खश राजाओं के अधीन हो गई थी।
- इस बीच खशों के 15 राजाओं ने राज किया। इनका पहला राजा विजड़ था।
- खशों के कालखंड को 'खशिया राज' कहा जाता है।
- खशिया राज कुमाऊंनी कला का स्वर्ण काल था।
- वीणा चंद की कोई संतान नहीं थी।
वीर चंद(Vir Chand) (1065-1080 ई)
- 196 वर्षों के पश्चात् चंद वंश के नौवें शासक वीरचंद ने पुनः कुमाऊँ पर अधिकार किया तथा उसने खश राजा सौपाल को युद्ध में मार दिया और इस प्रकार पुनः कुमाऊँ पर चंद वंश का शासन हो गया।
- नोट: बीर चंद संसार चंद का संबंधी था।
- बीर चंद ने सौंण खड़ायन की सहायता से सौपाल को हराया था।
- सौपाल की हत्या सौंण खड़ायन के द्वारा की जाती है।
- वीरचंद के समय डोटी के राजा क्राच्लदेव ने कुमाउं पर 1223 में आक्रमण किया था।
- चंपावत के बालेश्वर मन्दिर से क्राच्लदेव का एक लेख प्राप्त हुआ है।
- इसमें 10 मांडलिक राजाओं का नाम मिलता है।
- क्राच्लदेव वैराथ कुल का था व नेपाल के डोटी राज्य के अतंर्गत दूलू का निवासी था।
- उसने पुरूषोत्तम सिंह को यहां का सामन्त नियुक्त किया था।
- क्राच्लदेव के अतिरिक्त अनेक मल्ल ने भी 12 वी शताब्दी में गोपेश्वर पर अधिकार किया था।
नानकी चंद(Nanki Chand) (1117-1195 ई)
- नानकी चंद के बारे में जानकारी गोपेश्वर त्रिशूल लेख से प्राप्त होती है।
- 1191 में अशोक चल्ल के आक्रमण के समय नानकी चंद कुमाऊं का राजा था।
- अशोक चल्ल वैराथ कुल का था।
- सहज पाल व पुरूषोत्तम सिंह के बोधगया शिलालेखों में अशोक चल्ल को शिवालिक की पहाड़ियों में स्थित खशदेश का राजाधिराज बताया गया है।
थोहर चंद(Thohar Chand) (1261-1275 ई)
- चंद वंश का 23वॉ शासक थोहर चंद हुआ।
- इसे चंद वंश का वास्तविक संस्थापक माना जाता है।
- हर्षदेव जोशी, फेजर साहब, यशवंत कठौच व हैमिल्टन थोहरचंद को चंद वंश का संस्थापक मानते हैं।
- गढ़ सारी ताम्रपत्र थोहर चंद का है। जो लोहाघाट (चंपावत) से प्राप्त हुआ है।
- चंद राजवंश की सीरा प्रति में थोहर चंद का उल्लेख थावर अभय चंद के रूप में हुआ है।
त्रिलोक चंद(Trilok Chand) (1296-1303 ई)
- इन्होंने छखाता राज्य को जीतकर अपने राज्य में मिलाया और भीमताल में एक किला बनवाया था।
अभय चंद(Abhaya Chand) (1344-1374 ई)
- इस वंश का 28 वाँ शासक अभय चंद हुआ था।
- अभय चंद पहला ऐसा शासक हुआ, जिसका अभिलेख मिलता है।
- चंद वंश का सबसे पुरातन अभिलेख 1317 ई० में राजा अभय चंद द्वारा उत्कीर्ण कराया गया है।
- यह अभिलेख कुमाऊंनी भाषा में है।
- चंद वंश का पहला राजा अभय चंद था, जिसके बारे में जानकारी उसके अभिलेखों से प्राप्त होती है।
- अभय चंद का निकट संबंधी ज्ञानचंद था जिसने अभय चंद का वार्षिक श्राद्ध किया था।
- अभय चंद ने 1360 में मानेसर मंदिर चंपावत में भित्ति अभिलेख खुदवाया था।
- इस भित्ति अभिलेख की खोज डां रामसिंह द्वारा की गयी थी।
- राजा अभय चंद ने पुत्र प्राप्ति की खुशी में ये अभिलेख खुदवाया था।
गरूड़ ज्ञान चंद (Garuda Gyan Chand)(1374-1419 ई०)
- यह चंद वंश का 29वॉ राजा था।
- इसका राज चिन्ह गरूड़ था।
- इसे राजाधिराज महाराज कहा जाता था।
- इसके समय की महत्वपूर्ण घटना इसके द्वारा दिल्ली सल्तनत के सुल्तान फिरोजशाह तुगलक से मुलाकात थी।
- यह चंद वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली व प्रतापी राजा था।
- इस समय तराई पर कटेहारियों का आधिपत्य था ये फिरोजशाह के अधीन कार्य करते थे।
- कटेहरियों ने तराई पर ज्ञानचंद के पिता के समय अधिकार कर लिया था।
- ये फिरोजशाह के दरबार में गऐ और फिरोजशाह तुगलक ने इन्हें तराई-भाभर का क्षेत्र प्रदान किया था।
- थोड़े दिनों बाद फिर संभल के नवाब ने तल्लादेश, भाबर व तराई में जिसे उन दिनों मढुवा-की-माल (मदुवाल बोरों के नाम पर इसे यह नाम मिला) कहते थे अधिकार जमा लिया।
- ज्ञान चंद को 'गरूड़' की उपाधि फिरोजशाह तुगलक द्वारा दी गई थी।
- ज्ञानचंद गरूणेश्वर भगवान विष्णु का उपासक था।
- गरूण ज्ञानचंद का काल सभी चंद राजाओं में सर्वाधिक 45 वर्षों तक रहा।
- 1380 ई० में दिल्ली सुन्तान फिरोजशाह ने कटेहर के विद्रोही सरदार खड़गू का दमन करने के लिए तराई में प्रवेश किया तो वह कुमाऊँ में भाग गया था। जिसकी जानकारी हमें तारीख-ए-मुबारकशाही से मिलती है। इसके लेखक याहियो बिन अहमद सरहिंदी हैं।
- इनके समय चंपावत के राजदरबार में बक्शी (सेनापति) के पद पर नीलू कठायत था।
- नीलू कठायत ने राजा का आदेश पाकर यवनों को वहां से मार भगाया और माल प्रदेश पर अधिकार कर लिया।
- गरूड़ ज्ञानचंद ने नीलू कठैत को 'कुमय्या खिल्लत' की उपाधि दी और रौत भूमि भी दान दी थी।
- इसके प्रमाण के लिए एक लेख ग्वालियर के पत्थर में खोदकर नीलू कठायत के गांव कपरौली (चंपावत) में लगाया गया था।
- ज्ञानचंद के दरबार में एक व्यक्ति श्री जस्सा कमलेखी खवास था। उसका किल्ला बुंगा कमलेख गांव (चंपावत) में था। यह नीलू कठायत का दुश्मन था। इसके कहने पर राजा ने ही नीलू कठायत के दो बेटों (सुजु और वीरू) की आंखे निकलवा दी। बाद में नीलू कठायत ने जस्सा कमलेखी की हत्या कर दी थी।
- नीलू कठायत को अंत में राजा ने मरवा दिया था।
- गरूड़ ज्ञान चंद के बाद उसका पुत्र हरी चंद शासक बना लेकिन कुछ सयम बाद उसकी मृत्यु हो गयी।
- चंपावत में ज्ञानचंद का 1384 ई का ताम्रपत्र खोजा गया है। जिसमें ज्ञानचंद को त्रिलोकचंद का पुत्र कहा गया है।
- नोट- चामी गुदयूड़ा ताम्रपत्र चम्पावत- ज्ञानचंद
- इस ताम्रपत्र से अभय चंद की मृत्यु 1378 निश्चित होती है।
- गोवांसा ताम्रपत्र- चम्पावत 1418 ज्ञानचंद का था।
- किम्बाड़ी व मादली ताम्रपत्र चंपावत- ज्ञानचंद का था।
उद्यान चंद(Udyan Chand) (1420-1421 ई०)
- हरिचंद के बाद चंद वंश का 31वॉ राजा उद्यान चंद बना।
- इनको अपने दादा द्वारा नीलू कठैत की हत्या व उसके पुत्रों की आंखे निकालने के कार्य से बड़ी ग्लानि थी। इस कारण इन्होंने कई मंदिर व नौले बनाये व ब्राह्मणों से पूजा पाठ कराया।
- इसने चम्पावत स्थित बालेश्वर मन्दिर का निर्माण किया।
- नोट- एक अन्य मान्यता के अनुसार बालेश्वर मंदिर का निर्माण 1272 में हुआ।
- इस कार्य में कुंज शर्मा तिवारी/ श्रीचंद तिवाड़ी ब्राह्मण ने महत्वपूर्ण सहयोग दिया। जो गुजरात से आये थे। इनके साथ इनके पुत्र श्री शुकदेव भी थे।
- उद्यान चंद के बाद आत्मचंद द्वितीय एवं हरीचंद द्वितीय राजा बने।
- हरीचंद की मृत्यु के बाद विक्रम चंद शासक बना।
विक्रम चंद(Vikram Chand) (1433-1437 ई.)
- इनका एक ताम्रपत्र बालेश्वर मंदिर चंपावत से मिला है।
- यह ताम्रपत्र श्री कुंच शर्मा नामक ब्राह्मण के नाम का है।
- इसके काल में इनके भतीजे भारती चंद ने खश जाति को अपनी ओर कर विद्रोह खड़ा कर दिया। खशों का नेट श्री शौड़ करायत था। इसने विक्रम चंद को मार दिया और मलास गांव चंपावत जागीर में पाया था।
- विक्रम चंद ने शौड़ करायत के बेटे को महल की दीवार के भीतर डालकर मार दिया था।
- विक्रम चंद के बाद उसका भतीजा भारती चंद शासक बना।
भारती चंद(Bharti Chand) (1437-1450 ई)
- भारती चंद एक लोकप्रिय, साहसी, बहादुर एवं राजोचित गुणों से युक्त राजा था।
- इन्होंने शौड़ करायत को भाबर में कैद कर दिया था।
- इसी ने सर्वप्रथम चंद वंश की श्रीवृद्धि की थी।
- इसके समय नेपाल में मल्लवंशी राजा यक्षमल्ल या जयमल्ल का शासन था।
- मल्लों ने सीरा (डीडीहाट) को अपने राज्य में मिला दिया तथा इसे पर्वत डोटी का देश नाम दिया।
- मल्लों ने इसे पर्वत डोटी का देश नाम देकर एक बड़े डोटी साम्राज्य की स्थापना की थी।
- नोट - मल्ल राजा कुमाऊँ को पर्वत डोटी कहते थे।
- मल्लों ने डोटी पर राज किया जो 9वीं सदी से 18वीं शताब्दी तक रहे उन्हें रैका कहा जाता था।
- भारती चंद ने गद्दी प्राप्त करते ही अपने को या चंद राज्य को डोटी राज्य से स्वतंत्र होने की घोषणा की थी। जिस कारण भारती चंद और डोटी राजा यक्षमल/जयमल्ल के बीच बारह वर्ष का युद्ध चला। अंत में भारती चंद की जीत हुई थी।
- उसकी इस जीत में कटेहर के राजा ने उसकी सहायता की थी।
- भारती चंद पहला शासक था जिसने डोटी की अधीनता स्वीकार नहीं की थी।
- भारती चंद का समकालीन डोटी का राजा यक्षमल/जयमल्ल और सीरा का राजा बलि नारायण संसार मल्ल था।
- सौर का राजा विजय बम था।
- डोटी राज्य के फलस्वरूप भारती चंद ने रत्न चंद की सहायता से सोर, सीरा और थल पर अधिकार कर लिया तथा सोर से विजय बम का शासन समाप्त हो गया।
- भारती चंद ने सीरा में डुंगरा बसेड़ा को अपना सामंत नियुक्त किया था।
- भारती चंद के समय की सबसे बड़ी घटना नायक जाति की उत्पत्ति को माना जाता है। नायकों को चंद सैनिकों की अवैध संतान माना जाता है।
- जिन स्त्रियों से अवैध संबंध बनाये गये थे उन्हें कहकाली कहा गया और इनसे उत्पन्न संतानों को नायक कहा गया था।
- भारती चंद ने समाज के समस्त जातियों की एक कटक (सेना) बनाई थी।
- कुमाऊँ की प्रसिद्ध वीरांगना भागाधौन्यान के साथ भारती चंद के द्वंद्व युद्ध का जागरों में वर्णन मिलता है।
- भारती चंद ने 1447 ई में जोग मेहरा को मरणोपरांत रौत में भूमिदान दी थी।
- भारती चंद ने जीते जी अपने पुत्र रत्न चंद को गद्दी सौंप दी।
- भारती चंद के तीन पुत्र थे- रत्न चंद, सुजान कुंवर, पर्वत चंद।
- हुड़ेती(पिथौरागढ़) से प्राप्त ताम्रपत्र भारती चंद के काल का है।
रत्न चंद(Ratna chand) (1450-1488 ई)
- भारती चंद के बाद उसका पुत्र रत्न चंद शासक बना।
- रत्न चंद की योग्यता से प्रभावित होकर भारती चंद ने चौगर्खा परगना रत्न चंद को रौत में दिया था और 1450 में अपने जीवित रहते ही गद्दी त्यागकर रत्नचंद को राज्य सौंप दिया था।
- रत्न चंद के समय भी डोटी के राजा नाग मल्ल से युद्ध हुआ और चंदों की विजय हुई।
- रत्न चंद द्वारा सोर के बम राजा को भी पराजित किया। जो कि उदयपुर कोट का था।
- बम राजा बैलोर कोट किले में रहता था।
- बम राजा ने सौर में एक एक धार-में-का नौला बनाया था।
- घोड़साल भी बैलोरकोट के समीप ही है जहां बम राजा घोड़ों को घुमाते थे।
- श्री जैदा किराल राजा बम के समय एक बंदोबस्ती अफसर था। जिसकी पत्नी सती हुयी थी।
- रत्न चंद ऐसे पहले शासक हुए जिनके शासन काल में कुमाऊँ में पहला भूमि बंदोबस्त कराया गया था।
- रत्न चंद का उल्लेख खेती खान, लोहाघाट व हुड़ेती के ताम्रपत्रों में किया गया है।
- 1452 में रत्न चंद ने जागेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना की व वहां एक धर्मशाला बनाई।
- डोटी विजय से उत्साहित होकर रत्न चंद ने जुमला के राजा जगन्नाथ भट्ट, बजांग के राजा खड़कू सिह महर व थल के राजा सूर सिंह महर को पराजित किया था।
कीर्ति चंद(Kirti Chand) (1488-1503 ई०)
- कीर्ति चंद के समय डोटी राज्य ने स्वतंत्र होने का प्रयास किया लेकिन डोटी राज्य असफल रहा।
- कीर्ति चंद ने बारामण्डल तथा विसौद ( अल्मोड़ा) पर भी विजय प्राप्त की।
- कीर्ति चंद द्वारा खगमरा कोट तथा स्यूनरा (अल्मोड़ा) को भी अपने राज्य में मिला लिया गया।
- कीर्ति चंद ने फाल्दाकोट की विजय प्राप्त की और खाती जाति के राजा को हराया।
- कीर्ति चंद के शासन काल में चंद राज्य में कुमाऊँ का अधिकांश भाग सम्मलित हो चुका था।
- कीर्ति चंद ने तराई में जसपुर (ऊधम सिंह नगर) के निकट कीर्तिनगर की स्थापना 1491 में की थी।
- कीर्ति चंद के बाद प्रताप चंद, तारा चंद, मानिक चंद, कल्याण चंद, पूर्ण चंद तथा भीष्म चंद शासक बने थे।
- कीर्ति चंद ने अजयपाल से युद्ध किया और अजयपाल को परास्त किया।
- कीर्ति चंद गढ़वाल पर आक्रमण करने वाला यह पहला चंद शासक था।
भीष्म चंद(Bhishma Chand) (1555-1560 ई०)
- भीष्मचंद चंद वंश के 43वें शासक हुए।
- इनके शासन काल में एक महत्वपूर्ण घटना खवास खां द्वारा उत्तराखण्ड में शरण लेना था।
- इसका वर्णन तारीख-ए-दाउदी में श्री अब्दुल्ला ने किया था।
- खवास खां इस्लाम शाह सूरी का शत्रु था।
- भीष्मचंद ने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा स्थानांतरित करने सोची तथा अल्मोड़ा में खगमरा किले की स्थापना की थी।
- लेकिन इसी बीच भीष्म चंद की रामगढ़ (गागर के पास नैनीताल) में हत्या कर दी गई।
- गजुवाठिंगा नामक खशिया मुख्या ने भीष्म चंद की षडयंत्र रचकर हत्या कर दी।
- अपने पिता की हत्या के समय कल्याणचंद डोटी राज्य में हुये विद्रोह को दबाने गया था। पिता की हत्या की खबर मिलते ही उसने डोटी राज्य से समझौता कर लिया और वापस आकर गजुवाठिंगा को मारकर अपने पिता के मौत का बदला लिया था।
- भीष्म चंद चंपावत से शासन करने वाला अंतिम चंद नरेश था।
- इसके बाद इनके पुत्र बालो कल्याण चंद द्वारा 1563 में चंद राजधानी का अल्मोड़ा में स्थापित किया गया तथा नाम आलम नगर रखा गया।
- मुगल बादशाह औरंगजेब को खुश करने के लिये कल्याण चंद ने राजधानी का नाम आलमनगर रखा था।
- आलमनगर खशिया डांडा में है।
- महाराजा सुदर्शन शाह द्वारा नगर के प्रमुख स्थलों के लिये 1813 में अल्मोड़ा का मानचित्र निर्मित करवाया गया था।
बालो कल्याण चंद (Balokalyan Chand)(1560-1568 ई०)
- भीष्म चंद के पश्चात् चंद वंश की सत्ता बालोकल्याण चंद के हाथों में आ गई। भीष्म चंद का कोई पुत्र नहीं था।
- इतिहासकार बालो कल्याण चंद को ताराचंद का पुत्र बताते हैं। अतः भीष्मचंद ने कल्याण चंद को गोद लिया था।
- इसने राजधानी चम्पावत से अल्मोड़ा 1563 ई में स्थानांतरित की जो चंद वंश के पतन तक राजधानी बनी रही।
- अल्मोड़ा स्थित मल्ला महल तथा लाल मण्डी या फोर्ट मोयरा किला बालोकल्याण चंद द्वारा निर्मित हैं।
- एक अन्य मान्यता के अनुसार मल्ला महल रूद्र चंद ने बनाया था।
- बालोकल्याण चंद ने दानपुर क्षेत्र पर आक्रमण किया तथा उसे अपने अधिकार कर लिया।
- बालोकल्याण चंद के समय चंद राज्य की सीमा भोटान्तिक राज्य की सीमा को लगी।
- शोभा मल्ल ने चदों से वैवाहिक संबंध स्थापित कर अपनी पुत्री का विवाह बालोकल्याण चंद के साथ कर दिया और दहेज में सोर क्षेत्र मिला।
- शोभा मल्ल ने सीरा का राज्य देने से मना कर दिया था और कहा सीरा का राज्य मेरा सिर है चाहो तो सौर ले लो।
- इसके समय गंगोली (पिथौरागढ़) में मणकोटी वंश का राजा नारायण चंद था। कल्याण चंद ने गंगोली पर विजय प्राप्त की और मणकोटी राज्य को चंद वंश में मिलाया।
- मणकोटी राज्य का संस्थापक कर्मचंद था।
- कल्याण चंद ने मणकोटी के उप्रेती और पंतों को अल्मोड़ा में राज्य कर्मचारी बनाया।
- इसने भीष्मचंद की मौत का बदला गजुवा से लिया व 1560 में उसकी हत्या कर दी।
रूद्र चंद(Rudra Chand)(1568-1597 ई०)
- बालोकल्याण चंद के बाद रूद्रचंद गद्दी पर बैठा था।
- रूद्र चंद सभी चंद राजाओं में श्रेष्ठ, विद्वान, शिक्षा प्रेमी व दानी राजा था।
- इसके समय हुसैन खां कांठ एवं गोला (शाहजहांपुर का नवाब) ने तराई क्षेत्र पर अधिकार कर लिया और रूद्र चंद व तराई पर हमला करना पड़ा था।
- हुसैन खां की टुकड़ियों ने तराई पर 1568 में पहला आक्रमण किया और दूसरा आक्रमण 1575 में हुआ था।
- रूद्र चंद अकबर के समकालीन था।
- प्रारम्भ में यह एक स्वतंत्र राजा था लेकिन बाद में (1587) में इसने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।
- सन् 1588 में रूद्र चंद मुगल बादशाह अकबर से भेंट करने लाहौर गया था। इसने अकबर को तिब्बती याक (झुप्पु), कस्तूरी हिरणों की खाल भेंट की थी।
- इस घटना का उल्लेख जहांगीर ने अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-जहांगीरी में किया है।
- रूद्र चंद ने 1570 में नागौर की लड़ाई में अकबर का साथ दिया।
- उसकी वीरता से खुश होकर अकबर द्वारा रूद्र चंद को चौरासी माल (तराई भाबर का क्षेत्र) की जागीर दी गई।
- रूद्र चंद द्वारा बीरबल के पुत्र को अपना पुरोहित बनाया गया था।
- रूद्र चंद द्वारा तराई में रूद्रपुर नगर की स्थापना की गई थी।
- अल्मोड़ा स्थित मल्ला महल रूद्रचंद द्वारा निर्मित है।
- रूद्र चंद द्वारा रूद्रपुर में अटरिया देवी मेला प्रारम्भ किया गया था।
- रूद्र चंद ने नए सिरे से सामाजिक व्यवस्था भी स्थापित की। इसके लिए उसने त्रैवेणिक धर्म निर्णय और ऊषा रूद्रगोदया नामक पुस्तक लिखवाई थी।
- त्रैवेणिक धर्मनिर्णय पुस्तक में द्विज अर्थात ब्राह्मण मात्र के लिये धार्मिक व सामाजिक व्यवस्था दी गयी और ब्राह्मणों के गोत्र व उनके पारस्परिक संबंधों का वर्णन किया गया है।
- रूद्र चंद द्वारा चौथानी ब्राह्मण तथा ओली ब्राह्मणों के वर्ग बनाए गए थे।
- ओले पड़ने पर थाली बजाकर सभी को सतर्क करना ओली ब्राह्मण का कार्य था।
- गढ़वाल के सरोला ब्राह्मणों की भांति कुमाऊँ में भी ऊँचे ब्राह्मणों की मंडली बनाई जो परस्पर विवाह कर सकते थे।
- उसके नीचे पचबिड़िए (तिथानी) व उनके नीचे हलिए या पितलिए ब्राह्मणों के वर्ग बनाए थे।
- इसी के समय में गुरु, पुरोहित, वैद्य, पौराणिक, सईस (घोड़े की देखरेख करने वाला), राजकोली, पहरी, बाजदार, बजनिया, टम्टा आदि पद निर्धारित किए गए थे।
- अनाज का छठा भाग गांवों से वसूलकर राजधानी पहुंचाने के लिए कैनी-खसों का कार्य निर्धारण किया था।
- घरों में सेवा कार्य के लिए छयोड़े तथा छयोड़ियां रखवाई गयी थी।
- शेष समस्त सामान्य जनता अर्थात शूद्र का नाम पौड़ी-पन्द्रह बिस्वा रखा था।
- श्येन शास्त्र और ययाति चरित्रम् की रचना भी रूद्रचंद ने की और संस्कृत का प्रचार प्रसार किया था। श्येन शास्त्र पक्षी आखेट से संबंधित है।
- रूद्रचंद ने अपने राज्य के युवाओं को संस्कृत भाषा के अध्ययन के लिये कश्मीर व काशी भेजा था।
- रूद्र चंद ने अल्मोड़ा में संस्कृत शिक्षा की व्यवस्था की थी।
- रूद्रचंद के समय डोटी का राजा हरि मल्ल था। रूद्र चंद व हरि मल्ल के बीच 1581 में सीराकोट का युद्ध हुआ था।
- रूद्रचंद ने हरि मल्ल को पराजित कर सीरा को चंद राज्य में शामिल कर लिया था।
- सीरा विजय के फलस्वरूप अस्कोट, दारमा और जोहार भी उसके अधिकार में आ गए थे।
- रूद्रचंद ने सीरा में भूमि बंदोबस्त किया था। रूद्र चंद के सीरा से भूमि संबंधी दस्तावेज प्राप्त हुए।
- इस जीत के उपलक्ष्य में रूद्र चंद ने थल में 1590 में एक शिव मन्दिर अर्थात बालेश्वर मंदिर का निर्माण करवाया।
- रूद्र चंद द्वारा पुरूषोत्तम पंत को पुरस्कृत किया गया था। यह इसका योग्य सेनापति था जिसने सीरा को जीतने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
- रूद्र चंद का प्रसिद्ध सेनापति पुरूषोत्तम पंत बधाणगण को जीतने में मारा गया था।
- बधाणगढ़ का युद्ध 1581 में रूद्रचंद और बलभद्र शाह के बीच हुआ था।
- बधाणगण पर उस समय कत्यूरी राजा सुकाल देव/सुखदेव मिश्र का शासन था। पुरूषोत्तम की मौत के बाद रूद्र चंद ने सुकाल देव की हत्या कर दी थी।
- रामदत्त पंडित की सलाह पर इन्होंने चंपावत के बालेश्वर मंदिर का निर्माण किया। रामदत्त पंडित की समाधि बालेश्वर मंदिर के निकट है।
लक्ष्मी चंद(Laxmi Chand) (1597-1621 ई० )
- रूद्र चंद के पश्चात् उसका पुत्र लक्ष्मी चंद शासक बना था।
- सीरा से प्राप्त चंदों की वंशावली में इसे लछिमीचंद, मूनाकोट ताम्रपत्र में लछिमन चंद तथा मानोदय काव्य में लक्ष्मण कहा गया है।
- लक्ष्मीचंद के 22 बेटे थे।
- इसने गढ़वाल पर सात आक्रमण किए सातों बार इसे हार का सामना करना पड़ा था। इसलिये लोगों ने इनके किले का नाम जहां वे रहते थे स्यालबुंगा (अल्मोड़ा) रखा।
- आठवें आक्रमण में इसे सफलता मिली। इस आक्रमण का नेतृत्व सेनापति गैंडा के हाथों में था।
- लक्ष्मीचंद के गढ़वाल आक्रमण के समय गढ़वाल के शासक मानशाह थे।
- लक्ष्मीचंद गढ़वाल पर तो बार-बार आक्रमण करता था परन्तु दिल्ली के शासकों के सामने बिल्ली बनकर रहता था।
- इसी कारण इसे लखुली बिराली उपनाम दिया गया था।
- लक्ष्मीचंद अकबर व जहांगीर का समकालीन था।
- लक्ष्मीचंद ने मुगल बादशाह जहांगीर से भेंट की। इसका उल्लेख स्वयं जहांगीर द्वारा अपनी आत्मकथा जहांगीर नामा में किया गया है। जिसके अनुसार यह पहाड़ी राजा बहुत से पहाड़ी तोहफे मेरे वास्ते लाया। जैसे -बाज, घोड़े, हिरन की खाल, तलवारें आदि। यह पहाड़ी राजा सभी राजाओं में धनी है। इसके इलाके में सोने की खान भी बतायी जाती है।
- लक्ष्मीचंद द्वारा 1602 में बागेश्वर के बागनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया गया तथा उसके शिवलिंग में तांबे की नई शक्ति लगाई थी।
- यह एक बड़ा निर्माता था इसने बड़े-बड़े बगीचे लगवाये थे।
- राजा लक्ष्मीचंद ने खतडुआ त्योहार प्रारम्भ किया था। खतुडवा मानशाह का सेनापति था।
- लक्ष्मीचंद का बड़ा भाई शक्ति गुंसाई था, जो जन्म से अंधा था। वास्तव में प्रशासन की सारी व्यवस्था वही करता था।
- शक्ति गुसाई को उत्तराखंड का धृतराष्ट्र कहा जाता है।
- इसने नए सिरे से दारमा घाटी की व्यवस्था की जिसमें शौकों के अधिकार व कर्तव्य निर्धारित किए गए।
- इसने सीमाओं पर सीमा सूचक पत्थर भी लगवाए।
- इसने राजधानी में बंदोबस्ती कार्यालय और जमीन की नाप के दफतर की स्थापना की।
- इसने भूमि पर अनेक प्रकार के कर नियत किए थे। जिनका नाम ज्यूला, सिरती, बैकर, रछया, कूत, भात आदि मिलते हैं।
- इसने मेवाजात और भेंट (शिरनी) रखने के स्थान का नाम कोटयाल रखा।
- राजा के पहनने वाले कपड़े व खड़ाऊ, जूते, दोशाले, खिल्लत का सामान, निजी हथियार वगैरह रखने के मकान का नाम सेज्याल रखा। सेज्याल के जिम्मेदार अफसर का नाम सेज्याली था।
- तलवार, कटार, बंदूक वगैरह रखने की जगह को सेलखाना बनाया गया।
- बारूद, सोरा, गंधक रखने को दारूघर बनाया।
- बकरियों को रखने के लिये सीकर बनाया।
- गाय, भैंस के रहने की जगह ठाठ मुकर्रर की। उसका जिम्मेदार ठठवाल हुआ। इन ठाठों से ताजा दूध, दही व मक्खन दरबार में आता था।
- न्योवाली और बिष्टाली नामक कचहरियां बनाई गई थी। इनमें न्योवाली नामक कचहरी समस्त जनता के लिए व (बिष्टावली) केवल सैनिक मामलों के न्याय के लिए होती थी।
- लक्ष्मीचंद ऐसे राजा हुये जिनके करों के भय से लोगों ने छतों में खेती करना प्रारंभ कर दिया।
- लक्ष्मीचंद के ताम्रपत्रों में बेगार शब्द प्रयुक्त हुआ है।
- लक्ष्मीचंद ने अल्मोड़ा में महादेव का मंदिर बनाया। जिसका का नाम लक्ष्मीश्वर रखा था।
- 1599 में लक्ष्मीचंद ने रैका राजस्व व्यवस्था को अपना लिया था। जिससे चंद राज व्यवस्था और अधिक व्यवस्थित हुई थी।
दिलीप चंद (Dilip Chand )(1621-24ई०)
- लक्ष्मीचंद के बाद दिलीप चंद राजा बना जिसकी क्षय रोग से मृत्यु हुई।
विजय चंद(Vijay Chand)(1624-25ई०)
- विजय चंद ने आधुनिक बुलंद शहर स्थित अनूप शहर के किसी बड़गूजर की पुत्री से विवाह किया था।
- चंदों का वैवाहिक संबंध बड़गूजरों के साथ नहीं हो सकता था इससे राजपरिवार में अशांति छा गई थी।
- इनके राज्य की सत्ता त्रिमूर्ति सुखराम कार्की, पीरू गुसाई व विनायक भट्ट के हाथ में थी। ये जनता पर अत्याचार करते थे।
- सुखराम कार्की द्वारा विजय चंद की हत्या कर दी गई थी।
- लक्ष्मीचंद के पुत्र कुंवर नीला गुसाई द्वारा इनका विरोध किया गया। इन्होंने उनकी आंखें निकाल दी थी।
- अंधे नीला गुसाई के पुत्र ही बाद में बाजबहादुर चंद हुये थे।
- मल्ला महल का दरवाजा विजय चंद ने बनाया था।
त्रिमल चंद(Trimal Chand )(1625-38 ई०)
- गडयूड़ा ताम्रपत्र में इसे महाराज कुमार (युवराज) कहा गया है।
- गढ़वाल के राजा श्याम शाह की मदद से त्रिमल चंद को मेहरा दल द्वारा कुमाऊं की गद्दी पर बैठाया गया था।
- त्रिमल चंद ने गद्दी पर बैठते ही सुखराम कार्की को मरवा दिया तथा विनायक भट्ट की आंखे निकलवा दी। उनकी जमीन व सम्पत्ति अपने गुरू श्री माधव पंडित को सौंप दी थी।
- पीरू गुसाई ने प्रयाग जाकर आत्महत्या कर ली थी।
- त्रिमल चंद ने छखाता ध्यानीरौ के खशों का विद्रोह दबाया था।
- यह ऐसा शासक है जिसके पंवाड़े गाये जाते हैं।
- नोट- चंदों में छोटे राजकुमार को लल्ला या गुसाईं कहकर संबोधित किया जाता था।
बाजबहादुर चंद(Bazbahadur Chand) (1638-1678 ई०)
- बाजबहादुर चंद शाहजहां के समकालीन था ।
- इसको गद्दी पर बैठते ही भेंट लेकर (कस्तूरी, गजगाह, घोड़, सोने-चांदी के बर्तन आदि) दिल्ली के बादशाह शाहजहां के पास जाना पड़ा। कारण था नौलखिया माल व चौंरासी माल (तराई पर) पर कटेहारी राजपूतों ने अधिकार कर लिया था, जो शाहजहां की कृपा पर आश्रित थे।
- इस चौरासी कोष के लंबे भूभाग से चंद राजाओं को लगभग 9 लाख रूपये की आमदनी होती थी। इसके हाथ से निकल जाने से इनकी अर्थव्यवस्था लगभग ठप्प हो गई।
- शाहजहां ने कटेहर का राज्य बाजबहादुर को दिया व गढ़वाल युद्ध में बाजबहादुर द्वारा शाहजहां की मदद करने कारण शाहजहां ने उसे बहादुर व जमींदार की उपाधियों से विभूषित किया और नक्कारा बजाने की अनुमति प्रदान की थी।
- शाहजहां ने इसे नौलखिया माल या चौरासी माल जागीर दी थी।
- इस कार्य में बाजबहादुर की मदद मुरादाबाद के सुबेदार रूस्तम खां ने की थी।
- बाज बहादुर चंद का वास्तविक नाम बाजा गुसाई था।
- इसके द्वारा पंवार राज्य पर आक्रमण किया गया तथा विजय के प्रतीक के रूप में नन्दा देवी की मूर्ति को ले आया था। जिसे इसने अल्मोड़ा के किले में स्थापित किया।
- इसके द्वारा भोटियों और हुणियों को सिरती नामक कर चुकाने के लिए बाध्य किया गया।
- बाजबहादुर चंद द्वारा थल में एक हथिया देवाल बनवाया गया।
- एक हथिया देवाल की बनावट एलोरा के कैलाश मन्दिर की जैसी है।
- बाजबहादुर चंद का समकालीन डोटी का राजा देवपाल था।
- बाजबहादुर ने कत्यूरी राजकुंवरों के गढ़ मानिला पर हमला कर दिया तथा कत्यूरियों का वहां से गढ़वाल की ओर खदेड़ दिया था।
- तत्पश्चात् कत्यूरी राजकुंवरों ने गढ़वाल के पूर्वी भागों में लूट-पाट मचानी शुरू कर दी। फलतः भूप सिंह गोला रावत थोकदार की पुत्री तीलू रौतेली को इन्हें गढ़वाल से खदड़ने के लिए हथियार उठाने पड़े।
- तीलू रौतेली को आर्क ऑफ जोन तथा गढ़वाल की झांसी की रानी के नाम से जाना जाता है।
- पहले भूपसिंह गोर्ला रावत ने अपने पुत्रों भगतू व पर्त्वा के साथ इन उत्पातियों का प्रतिरोध किया किन्तु जब वे पुत्र के साथ इस लड़ाई में मारे गए तो वीरांगना तीलू रौतेली ने समस्त गढवाल की जातियों (नेगी, अस्वाल, सजवाण, रावत) को इकट्ठा कर एक फौज तैयार की तथा कत्यूरियों पर हमला कर दिया और उन्हें भगा दिया।
- तीलू ने 15 वर्ष से 22 वर्ष की उम्र में 7 युद्ध लड़े थे।
- तीलू ने गुरिल्ला पद्धति से युद्ध लड़ा था।
- युद्ध में थकी-हारी तीलू रौतेली बीरोंखाल में पूर्वी नयार नदी में नहा रही थी तभी एक शत्रु रामू रजवार ने पीछे से वार कर तलवार से उसकी गर्दन उड़ा दी।
- तीलू का जन्म 8 अगस्त 1661 को गुराड़ गांव पौढी में हुआ था।
- तीलू के बचपन का नाम तिलोतमा था।
- तीलू की मां का नाम मैणा देवी था।
- तीलू की घोड़ी का नाम बिंदुली था।
- तीलू रौतेली की सहेलियों का नाम बेल्लु व देवली था।
- तीलू रौतेली की मूर्ति बीरोंखाल पौढी में स्थापित है।
- उत्तराखंड सरकार द्वारा महिलाओं को साहसिक कार्य के लिये तीलू रौतेली पुरस्कार 2006 से दिया जाता है
- जिसमें 21 हजार रूपये व प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाता है।
- तीलू रौतेली के नाम पर 1 अप्रैल 2014 से दिव्यांग महिलाओं के लिये तीलू रौतेली पेंशन योजना शुरू की गयी है। जिसमें 800 रू प्रतिमाह प्रदान किया जाता है। पेंशन 18 से 60 वर्ष की दिव्यांग महिलाओं को प्रदान की जाती है।
- बाजबहादुर चंद ने घोड़ाखाल मन्दिर का निर्माण कराया था।
- इसने 1670 ई० में तिब्बत अभियान किया व मानसरोवर यात्रा में बाधा डालने वाली हूण जनजाति को हराया था तथा तिब्बतियों के ताकलाखाल के किले पर अधिकार कर लिया था।
- इसके द्वारा 1673 ई० में कैलाश मानसरोवर यात्रियों के लिए गूंठ भूमि दान दी गयी।
- इसने 1674 ई० में व्यास घाटी को चंद राज्य में मिला लिया।
- सुलेमान शिकोह पहले बाजबहादुर के दरबार में आया था। औरंगजेब से दोस्ती होने के कारण इसने उसे पनाह नहीं दी।
- बाजबहादुर चंद ने अपने दो राजदूत (पर्वत सिंह गुसाई, व विश्वरूप पांडे, राजगुरू को दिल्ली में औरंगजेब के पास भेजा।
- ऊधमसिंह नगर का बाजपुर शहर 1664 में बाजबहादुर चंद ने बसाया था।
- बाजबहादुर चंद ने तराई में शासन की सुविधा के लिए इसे पट्टियों व ग्रामों में विभक्त किया।
- बाजबहादुर चंद के अन्तिम दिनों के बारे में प्रचलित कहावत है कि 'बरस भयो अस्सी बुद्धि गई नस्सी'। इससे अनुमान होता है कि वृद्धावस्था में उसकी लोकप्रियता कम हो गई।
- अनंतदेव ने बाजबहादुर के संरक्षण में 'स्मृति कौस्तुभ' नामक ग्रंथ की रचना की।
- बाजबहादुर स्वयं को भगवान नारायण का स्वरूप मानता था।
- बाजबहादुर चंद ने अपने दरबार को मुगल दरबार के अनुरूप सजाया और नए पद सृजित किये।
- पनेरू - पानी भरने वाला
- फुलेरिया - फल लाने वाला
- हर बोला- सुबह हर हर की आवाज कर राजपरिवार को जगाने वाला
- मठपाल- मंदिरों की रक्षा करने वाला।
- बाजबहादुर चंद ने कटारमल के सूर्य मंदिर का जीर्णोद्वारा किया।
- बाजबहादुर ने भीमताल में भीमेश्वर महादेव का मंदिर बनाया।
- पीनाथ महादेव मंदिर की स्थापना कौसानी में की।
- अनंतदेव ने बाजबहादुर चंद को उदास बूढ़ा या अन्यायी राजा कहा है।
- काशीपुर का संस्थापक काशीनाथ अधिकारी बाजबहादुर चंद का कर्मचारी था।
- कुमाऊं का बलबन बाजबहादुर चंद को कहा जाता है।
उद्योत चंद(Udhyot Chand) (1678-1698 ई०)
- बाजबहादुर चंद की मृत्यु के बाद उसका पुत्र उद्योत चंद गद्दी पर बैठा।
- उद्योत चंद का एक ताम्रपत्र बरम (मुवानी-पिथौरागढ़) से प्राप्त हो चुका है।
- उद्योत चंद द्वारा उद्योत चन्द्रेश्वर, पार्वतीश्वर, त्रिपुरा देवी का मन्दिर, विष्णु मन्दिर, शुकेश्वर महादेव मन्दिर तथा सोमेश्वर महादेव आदि मन्दिर बनवाये गए।
- उद्योत चंद द्वारा कोटा भाभर (तराई क्षेत्र काशीपुर) में आम के बगीचे लगवाये गए।
- सत्तासीन होते ही उद्योत चंद ने पंवार राज्य के बधाणगढ़ पर आक्रमण कर वहां अधिकार कर लिया।
- इसने 1678 में पंवार राज्य के बधाण गण पर अधिकार किया था।
- युद्ध में इसके प्रसिद्ध सेनापति मैसी साहू की मृत्यु हो गई।
- 1679 में उद्योतचंद ने गढवाल पर पुनः आक्रमण कर चांदपुर गढ को जीत लिया।
- इसके विरूद्ध गढनरेश फतेहपतिशाह व डोटी के नरेश देवपाल ने संधि कर रखी थी फलतः इन्होंने 1680ई० में पूर्व-पश्चिम से उद्योतचंद के राज्य पर आक्रमण कर दिया।
- उद्योचंद ने दोनों राजाओं का मुकाबला कर उन्हें अपनी सीमा से खदेड़ दिया और चौकसी के लिए ब्रह्मदेव, द्वाराहाट, चंपावत व सौर क्षेत्र में छावनियां स्थापित की।
- दूनागिरी, दोनों राजाओं को जीतने के बाद 1682 ई० में प्रयागराज के रघुनाथपुर घाट में स्नान किया।
- उसकी इस अनुपस्थिति का लाभ उठाकर देवपाल ने पुनः काली कुमाऊँ पर अधिकार कर लिया।
- अतः उद्योत चंद देवपाल को सबक सिखाने के लिए चंपावत की ओर चला।
- उद्योत चंद के आगमन की खबर सुन देवपाल अपनी ग्रीष्कालीन राजधानी अजमेरगढ़ की ओर भाग खड़ा हुआ और उद्योत चंद ने अजमेरगढ़ में लूटपाट की। देवपाल यहां से भी भाग खड़ा हुआ।
- इसने वहां की ग्रीष्मकालीन राजधानी अजमेरगढ़ पर अधिकार कर लिया।
- चंद राजाओं में भारती चंद के बाद यही वह राजा था जिसने नेपाल पर आक्रमण कर वहां की ग्रीष्मकालीन राजधान अजमेरगढ़ पर 1683 में अधिकार कर लिया।
- इस सैनिक अभियान में उद्योतचंद का सेनापति हिरू देउबा मारा गया था।
- ज्ञानचंद ने कत्यूर घाटी में भी बद्रीनाथ का एक मन्दिर स्थापित किया।
- इसने बैजनाथ मन्दिर का जीर्णोद्धार किया।
- देवस्थल के चौपाता, नकुलेश्वर, कासनी, मर्सोली आदि के मन्दिर चंद शैली पर इन्हीं राजाओं के बनवाये थे।
- ज्ञानचंद ने अपने पिता की हार का बदला लेने के लिए 1704 ई० मे डोटी पर आक्रमण किया यह युद्ध भावर में लड़ा गया इसमें डोटी नरेश तो भाग गया किन्तु कुमाऊँ की सेना मलेरिया ग्रस्त हो गई।
- डोटी अभियान के दौरान उद्योतचंद व ज्ञानचंद ने सौर व सीरा में भी अनेक मंदिर बनवाये थे। उनके बनाये मंदिरों को देवल या द्यौल कहा जाता था।
जगतचंद(Jagatchand) (1708-1720 ई०)
- ज्ञानचंद के बाद जगत चंद गद्दी पर बैठा।
- तराई भाबर से 9 लाख रूपये की आय इसी के समय होती थी।
- यह मात्र 12 वर्षों तक शासक रहा।
- यह बहुत मिलनसार था जिससे जनता इसके प्रति अपार श्रृद्धा रखती थी।
- विद्वानों ने इसके काल को कुमाऊँ का स्वर्ण काल कहा।
- इसने सबसे पहले 1709 ई० में गढराज्य के लोहाबागढ़ तथा बधानगढ़ पर सफल आक्रमण किया। इसके बाद इसने श्रीनगर की ओर रूख किया और श्रीनगर को भी जीत लिया। गढ़नरेश फतेहपतिशाह परास्त हुए और देहरादून की ओर भाग गए।
- जगतचंद गढ़वाल से काफी धन लूटकर लाया जो उसने गरीबों को बांट दिया कुछ धन दिल्ली मुगल राजा मुहम्मदशाह के दरबार में भेजा।
- जगतचंद ने भी मुगल बादशाह बहादुरशाह के पास बहुमूल्य भेंटें भेजी थीं।
- इसने जुआरियों पर भी कर लगाया था। जिसे जुआ की वांच कहा जाता था।
- जगत चंद का काल सभी चंद राजाओं में सर्वाधिक उत्कर्ष का काल था।
- जगतचंद की मृत्यु चेचक से हुई थी। कुछ विद्वान मानते हैं कि जगतचंद की मृत्यु शीतलादेवी के प्रकोप से हुयी थी।
- शीतलादेवी को चेचक की देवी कहा जाता है।
- श्री सूरसिंह ऐड़ी जगतचंद के दरबार में बख्सी अर्थात सेनापति के पद पर थे ।
- जगतचंद ने 1000 गायें दान की। इसको गोसहस्त्रदान भी कहते हैं।
- जगतचंद के समय जगतचन्द्रिका व टीका दुर्गा की नामक दो ग्रन्थ लिखे गए।
देवी सिंह(Devi Singh) (1720-1726 ई०)
- जगत चंद के बाद उसका पुत्र देवीचंद गद्दी पर बैठा। बरम ताम्रपत्र में देवीचंद को महाराज कुमार श्री देवी सिंह गुसाई तथा झिझाड़ ताम्रपत्र में महाराज कुमार श्री देवीसिंह गुसाईं ज्यू कहा गया है।
- देवी चंद को विरासत में अपार धन संपदा मिली थी।
- कहा जाता है कि इसने कुमाऊँ का विक्रमादित्य बनने की चाह में अपना राजकोष चाटुकारों को दक्षिणा देने में व्यय कर दिया। इसलिये इसे चंद वंश का मुहम्मद बिन तुगलक कहा जाता है।
- देवीचंद को चंद वंश का तुगलक एटकिंशन ने कहा था।
- देवीचंद ने लक्ष्य होम व कोटि होम नामक यज्ञ किए थे।
- 1723ई० में देवीचंद व गढवाल के राजा प्रदीपशाह के बीच दो युद्ध लड़े गये। पहला रणचूला का युद्ध जिसमें गढवाली सेना हार जाती है। दूसरा युद्ध गड़ाई गंगोली का युद्ध जिसमें गढवाली सेना जीत जाती है।
- गैंड़ा बिष्ट या मानिकमल जिसका (पुत्र पूरनमल हुआ के कहने पर देवीचंद कुमाऊँ का विक्रमादित्य बनने निकला।
- देवीचंद ने दिल्ली पर भी आक्रमण किया व खूब धन बर्बाद किया। इस कारण एटकिंशन व रूद्रदत्त पंत ने इसे पागल शासक व कुमाऊ का मुहम्मद बिन तुगलक कहा।
- देवीचंद की हत्या गैड़ा बिष्ट, पूरनमल व रणजीत पतौलिया द्वारा कर दी गयी।
- देवीचंद ने भी 1000 गायों का दान किया था।
अजीत चंद(Ajit Chand )(1726-1729 ई०)
- अजीत चंद के समय पूरनमल व उसके पिता माणिकचंद गैड़ा बिष्ट ने खुलकर मनमानी की। इसलिये कुमाऊं के इतिहास में अजीतचंद का शासन गैड़ागर्दी के नाम से जाना जाता है।
- अजीत चंद नरपत सिंह कठेड़िया का पुत्र था।
- रोहिलखंड क्षेत्र में पिपली के राजा नरपत सिंह कठेड़िया के साथ ज्ञानचंद की लड़की का विवाह हुआ था। नरपत सिंह कठेड़िया का पुत्र अजीत सिंह अजीत चंद के नाम से गद्दी पर बैठा।
- अजीत चंद की हत्या पूरनमल और उसके पिता मानिक चंद ने कर दी।
कल्याण चंद चतुर्थ(Kalyan chand IV) (1729-1747 ई०)
- कल्याण चंद चतुर्थ के समय कुमाऊँ पर रूहेलों का आक्रमण हुआ था।
- कुमाउं से हिम्मत सिंह रौतेला, रोहेला सरदार मुहम्मद अली खां के पास शरण लेने गया। लेकिन कल्याण चंद ने इसे मरवा दिया।
- 1743-44 ई० में रूहेलखण्ड के सरदार अली मुहम्मद खां ने कुमाऊँ पर आक्रमण किया तथा इसी के समय 1744 अवध के नवाब मंसूर अली खां ने भी कुमाऊँ पर आक्रमण कर उसके कुछ क्षेत्रों को जीता।
- कल्याण चंद भागकर गढवाल के शासक प्रदीप शाह के पास चला गया था।
- प्रदीप शाह ने कल्याण चंद की सहायता के लिये गढवाल की सेना भेजी तत्पश्चात रोहेलों और कल्याण चंद के दूनागिरी का युद्ध होता है। जिसमें रोहिले जीत जाते हैं और 3 लाख रूपये की मांग करते हैं।
- कुमाऊं गढ़वाल की सेना पहली बार दूनागिरी के युद्ध में मिलकर लड़ी थी।
- रूहेलों ने अल्मोड़ा को जीतकर वहां भंयकर ताण्डव मचाया।
- कल्याणचंद पारिवारिक कलह के चलते नेपाल भाग गए जिसे बाद में अनूप सिंह तड़ागी कुमाऊँ लाया व यहां राजा बनाया।
- सन् 1745 में रोहिले नजीब खां के नेतृत्व में दूसरा आक्रमण करते हैं लेकिन इस बार हार जाते हैं।
- कल्याण चंद का दिवान शिवदेव जोशी था।
- कल्याण चंद ने अपने अंतिम समय में शिवदेव जोशी को अपना पुत्र दीपचंद को सौंपकर कहा कि अगला राजा मेरे पुत्र को ही बनाना। शिवदेव जोशी ने ऐसा ही किया और स्वयं दीपचंद का संरक्षक बन गया। इसी कारण रूद्रदत्त पंत ने शिवदेव जोशी को कुमाऊं का बैरम खां कहा गया है।
- कल्याण चंद चतुर्थ के समय प्रसिद्ध कवि शिव ने कल्याण चन्द्रोदयम की रचना की।
- कन्याण चंद चतुर्थ ने अल्मोड़ा में चौमहल बनाया था।
- प्रदीपशाह ने अपने दो वकील श्री बंधु मित्र व लक्ष्मीधर ओझा को कल्याणचंद के दरबार में भेजा।
दीप चंद(Deep Chand) (1748-1777 ई०)
- राजा दीपचंद के अवयस्क होने के कारण राज्य की पूरी शक्ति शिवदेव जोशी के हाथ में थी। शिवदत्त जोशी उसका संरक्षक था।
- शिवदेव जोशी को कुमाउं का बैरम खां रूद्रदत्त पंत ने कहा।
- शिवदेव जोशी की मृत्यु काशीपुर में हुयी।
- शिवदेव जोशी की मृत्यु के बाद दीपचंद हर्षदेव जोशी को दिवान बनाना चाहते थे।
- दीपचंद की प्रियरानी श्रृंगार मंजरी थी जिसका प्रेमी परमानंद बिष्ट था।
- श्रृगार मंजरी अपने रिश्तेदार मोहन सिंह रौतेला को दिवान बनाना चाहती थी।
- मोहनसिंह रौतेला ने बड़ी चालाकी से हर्षदेव जोशी के भाई जयकृष्ण जोशी को मरवा दिया और हषदेव जोशी व राजा दीपचंद को भी कैद कर लिया।
- 1777 ई० के अंत में राजा दीपचंद व उनके दो पुत्रों को सीराकोट के किले में मार दिया गया।
- नोट- दीपचंद को कुमाउं का शाहजहां कहा जाता है।
- इसके शासनकाल में बड़े बड़े युद्ध भारतीय इतिहास में लड़े गये थे।
- प्लासी का युद्ध -1757 ई०
- पानीपत का तृतीय युद्ध -1761 ई०
- बक्सर का युद्ध -1764 ई०
- पानीपत के तृतीय युद्ध में चंद सेना ने रूहेलखंड के सेनापति हाफिज रहमत खां के साथ मिलकर अफगानों का साथ दिया। इसमें चंद सेना का नेतृत्व सेनापति हरिराम व उपसेनापति बीरबल नेगी ने किया था।
- हैमिल्टन ने 'किंगडम ऑफ नेपाल' में दीपचंद को गूंगा शासक कहा है।
मोहनचंद(Mohan Chand) (1777-79 ई०)
- 1779 में ललितशाह व मोहनचंद के बीच बग्वालीपोखर का युद्ध हुआ। जिसमें ललितशाह जीत गये।
- मोहनचंद हारकर भाग जाता है।
प्रद्युम्न चंद(Pradyuman Chand )(1779-86 ई०)
- प्रद्युम्न चंद एकमात्र ऐसे शासक थे। जिन्होंने गढवाल और कुमाऊं दोनों पर अधिकार किया था।
- ललित शाह ने हर्षदेव जोशी की सलाह पर अपने पुत्र प्रद्युम्न शाह को प्रद्युम्न चंद के नाम से कुमाऊँ का शासक घोषित किया था।
- 1779 ई० के पश्चात् कुमाऊँ गढ़राज्य का अधीनस्थ राज्य बन गया था।
मोहनचंद (Mohan Chand)(1786-88 ई०)
- मोहन चंद और प्रद्युम्न शाह ने कई युद्ध लड़े थे।
- 1786 ई० में मोहन चंद ने गद्दी पाने का पुनः प्रयास किया तथा पाली ग्राम या नैथड़ागढी के युद्ध में विजयी हुआ और हर्षदेव जोशी भागकर श्रीनगर चला गया।
- 1788 में हर्षदेव जोशी ने मोहन सिंह व उसके बेटे बिशन सिंह की हत्या कर दी।
- दो बार कुमाउं की गद्दी पर बैठने वाला शासक मोहनचंद था।
शिव चंद(Shiv Chand )(1788ई०)
- 1788 में हर्षदेव जोशी ने शिवचंद को राजा बनाया।
- मोहनचंद के भाई लाल सिंह ने शिवचंद पर आक्रमण किया और शिवचंद हार गया।
- हर्षदेव जोशी गढवाल चले गये थे।
- इसके बाद लाल सिंह ने अपने भाई मोहन चंद के पुत्र महेन्द्र चंद को शासक बनाया।
महेन्द्र चंद(Mahendra Chand) (1788-90ई०)
- महेन्द्र चंद के समय गोरखा नरेश रण बहादुर की सेना ने कुमाऊं पर आक्रमण किया और 1790ई० में हवालबाग (अल्मोड़ा) के युद्ध में महेन्द्र चंद पराजित हुये थे।
- इस प्रकार चंद वंश का अंत हो गया और गोरखा शासन स्थापित हो गया जो 1815ई० तक कुमाऊं व गढ़वाल दोनों पर रहा था।
- गोरखाओं को कुमाऊं आक्रमण का न्यौता हर्षदेव जोशी देता है।