उत्तराखण्ड में शासन करने वाली प्रथम राजनैतिक वंश:कुणिन्द राजवंश | First Political Dynasty to Rule in Uttarakhand:Kunind Dynasty

कुणिन्द राजवंश उत्तराखण्ड में शासन करने वाला प्रथम राजनैतिक वंश था। प्राचीन भारतीय साहित्य में कुणिन्दों का उल्लेख मिलता है। कुणिन्द राजवंश के समय इस

 

कुणिन्द राजवंश(Kunind Dynasty) (1500 ई पूर्व-200 ई )
कुणिन्द वंश

  • इनका साम्राज्य मूलतः गंगा, यमुना के उपजाऊ क्षेत्र के आस-पास था।
  • प्राचीन भारतीय साहित्य में कुणिन्दों का उल्लेख मिलता है।
  • कुणिन्द राजवंश के समय इस क्षेत्र को ब्रह्मपुर कहा जाता था।
  • प्रारंभिक राजधानी- कालकूट (कालसी)
  • धर्म- शैव और बौद्ध
  • महाभारत में अनेक स्थान पर कुणिंद शब्द का प्रयोग किया गया है।
  • महाभारत में कहा गया है कि कुणिंद शैलोदा नदी के दोनों तटों पर निवास करते थे।
  • कुणिंदों के इतिहास की जानकारी के लिये कुछ अभिलेख व मुद्राऐं प्राप्त हुयी हैं।
  • भारतीय साहित्यों में महाभारत एवं अष्टाधायी कुणिन्दों के संबंध में महत्वपूर्ण सूचनायें प्रदान करते हैं।
  • विदेशी यात्रियों एवं लेखकों के विवरण भी कुणिन्दों के संबंध में जानकारी देते हैं।
  • कुणिंद राजवंश से संबंधित अब तक पांच अभिलेख प्राप्त हो चुके हैं। 
  • इन कुणिन्द मुद्राओं पर खरोष्ठी एवं ब्राह्मी लिपि उत्कीर्ण है।
  • मौर्य काल या उससे पूर्व काल में कणिन्द शासकों के नामों का कहीं उल्लेख न होने तथा प्रारम्भिक कुणिन्द मुद्राओं अमोघभूति प्रकार की रजत मुद्राएं 31 से 38 ग्रेन वजन तक की हैं तथा ताम्र मुद्राएं 9.5 से 252 ग्रेन वजन के आधार पर अनुमान लगाया जाता है कि इस काल में कुणिन्द जनपद में गणतंत्रात्मक शासन स्थापित था। क्योंकि कुणिन्दों की प्रारम्भिक मुद्राओं में किसी शासक का नाम नहीं मिलता, बल्कि मात्र कुणिन्द ही उत्कीर्ण है।
  • कुणिन्द जनपद पूर्व में काली नदी से पश्चिम में सतलज नदी तक तथा उत्तर में हिमालय की तलहटियों से दक्षिण में बेहट तक के क्षेत्र तक फैला हुआ था, क्योंकि कुणिन्दों की मुद्राएं यमुना की पूर्वी एवं पश्चिमी घाटियों-कांगड़ा, करनाल, सुनेत (लुधियाना के समीप), अम्बाला, सहारनपुर, गढ़वाल कुमाऊँ के अनेक स्थानों से प्राप्त हुई हैं।
  • अब तक जिस शासक की सर्वाधिक मुद्राएं प्राप्त हुई हैं वह अमोघभूति हैं। 

कुणिंदों का शासनकाल(Ruling period of Kunind)

  • कुणिंदों का शासनकाल 1500 ई पू से 200ई पूर्व तक तीन काल खंडों में विभाजित है।
  • 1- प्राचीन कुणिन्द(1500-900 ई पूर्व)
  • 2- मध्यकालीन कुणिन्द(900-300 ई पूर्व
  • 3- उत्तरकालीन कुणिन्द(300 ई पूर्व-200 ई)

कुणिन्द मुद्राएं (Kunind Mudras)

  • ये मुद्राएं रजत एवं ताम्र धातुओं से निर्मित हैं।
  • कुणिन्द मुद्राओं में उनको प्रचलित करने वाले शासकों का नाम भी अंकित है।
  • अमोघभूति की मुद्राओं में लेख खरोष्ठी एवं ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं जबकि अन्य शासकों की मुद्राओं में ब्राह्मी लिपि उत्कीर्ण है।

कुणिन्द मुद्राओं  के प्रकार(Types of Kunind Mudras)

  • कुणिन्द मुद्राओं को दो भागों में बांटा जा सकता है -
  • प्रारंभिक कुणिन्द मुद्राएं

प्रारम्भिक कुणिन्द मुद्राएं(Early Kunind Mudras)

  • ये मुद्राएं ताम्र धातु से निर्मित हैं।
  • प्रारम्भिक कुणिन्द मुद्राओं में किसी शासक का नाम अंकित न होकर मात्र कुणिन्द उत्कीर्ण है। 

अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं(Almora Type Mudras)

  • अल्मोड़ा प्रकार की मुद्राएं अल्मोड़ा जिले से प्राप्त हुई हैं।
  • ये मुद्राएं सामान्यतः ताम्र धातु से निर्मित हैं।
  • इन मुद्राओं में म-ग-भ-त-स (मार्गभूति),  इत्यादि कुणिन्द शासकों का नाम मिलता है।
  • ये मुद्राएं ब्राह्मी लिपि में उत्कीर्ण हैं।


शक राजवंश(Saka Dynasty)

  • कुमाऊँ क्षेत्र में शक सवंत का प्रचलन तथा सूर्य मूर्तियों एवं मन्दिरों की उपस्थिति शकों के अधिकार की पुष्टि करते हैं।
  • आधुनिक भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर शक सवंत् कहलाता है। जो शकों ने प्रचलित किया।

कुषाण राजवंश(Kushan Dynasty)

  • कुषाण शासन के अवशेष वीरभद्र (ऋषिकेश), मोरध्वज (कोटद्वार) और गोविषाण (काशीपुर) से बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं।
  • ऊधमसिंह नगर के काशीपुर से कुषाण सम्राट वासुदेव द्वितीय की कुछ स्वर्ण मुद्राएं प्राप्त हुई हैं।

यौधेय वंश(Yaudheya Dynasty)

  • यौधेय वंश की मुद्राएं जौनसार भावर (देहरादून) व कालोडांडा (लैंसडाउन) से मिली हैं।
  • यौधेयों ने कुषाणों को कुचला था।

गुप्तकाल( Gupta's Period)

  • गुप्तकाल में समुद्रगुप्त को कर्तृपुर के शासक कर देकर प्रसन्न करते थे।
  • समुद्रगुप्त व उसके पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय ने उत्तराखण्ड पर अधिकार किया था।
  • छठी शताब्दी के उतरार्द्ध में कन्नौज के मौखरी राजवंश ने नागों की सत्ता को समाप्त कर उत्तराखण्ड पर अधिकार कर लिया था।
  • चीनी यात्री ह्वेसांग 634 ई० में हर्षवर्धन के साथ उत्तराखण्ड आया था।
  • हषवर्धन के समय उत्तराखण्ड में बौद्ध धर्म का प्रभुत्व था।
  • हर्षवर्धन की मृत्यु के पश्चात् उत्तराखण्ड में धीरे-धीरे कई राज्य स्थापित हो गए।
  • सैन्य शक्ति के अभाव में इन छोट-छोटे राजाओं ने गढ़ों या किलों का निर्माण कर लिया।

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