चंद वंश की कर प्रणाली | Tax System of Chand Dynasty in Hindi

36 रकम व 32 कलम कुल 68 प्रकार के कर थे। लेकिन 18-20 करों का ही वर्णन मिलता है।चंद शासन काल में भूमि की माप नाली, ज्यूला, विशा, अधालि, पालो, मसा आदि से

 

चंद राजवंश का प्रशासन(Administration of Chand Dynasty)

  • चंदों के प्रशासन में राजा सर्वोच्च होता था। राजा के मंत्रिमंडल में निम्न पद थे-
  • धार्मिक व्यवस्था वाले गुरू, पुरोहित, धर्माधिकारी आदि थे।
  • राज परिवार के महाराजकुमार में बड़े व छोटे राजकुमार शामिल होते थे।
  • सैनिक व्यवस्था वाले - दीवान, बक्शी, फौजदार आदि कहलाते थे।
  • आधुनिक व्यवस्था को सुविधाजनक बनाने के लिये इनका प्रशासन कई भागों में विभाजित किया था।
  • चार बूढ़ा - इसके अंतर्गत कार्की, बोहरा, तड़ागी तथा चौधरी चार जातियां थी। जिनको चार आल भी कहा जाता था।

चंद वंश की कर प्रणाली(Tax System of Chand Dynasty)

  • 36 रकम व 32 कलम कुल 68 प्रकार के कर थे। लेकिन 18-20 करों का ही वर्णन मिलता है।
  • गोरखों ने 36 रकम 32 कलम का उन्मूलन किया था व नये प्रकार के कर लगाये थे।
    चन्द राजाओं के कर

  • चंद शासन काल में प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ग्राम होती थी।
  • नाली का सर्वप्रथम प्रयोग तमिल साहित्य में मिलता है।
  • ग्राम के प्रशासक को सयाना या बूढ़ा कहा जाता था।
  • चंद शासन काल में भूमि की माप नाली, ज्यूला, विशा, अधालि, पालो, मसा आदि से होती थी।
  • बीस नाली जमीन लगभग एक एकड़ के बराबर होती थी।
  • ऐसे ही एक मसा दो किलो का होता था।
  • अधाली लगभग पंद्रह किलो का होता था।
  • ज्यूला दस कुंतल के बराबर होता था।
  • परंपरानुसार उपज का छठा भाग ही कर के रूप में लिया जाता था जिसे गल्ला छहाड़ा कहा जाता था।
  • यह कर अनाज व नकद दानों के रूप में लिया जाता था।
  • चंदों के समय जमीन के मालिक को थातवान कहा जाता था।

चंद राजाओं के द्वारा लगाए गए प्रमुख कर(Major taxes imposed by Chand kings)

  • साहू/साउलि - लेखक को देय कर।
  • रंतगली कर - यह भी लेखक को देय कर था इसका उल्लेख मूलाकोट ताम्रपत्र में मिलता है।
  • खेनी कर - कपीलानी- कुली बेगार।
  • कटक कर - सेना के लिए लिया जाने वाला कर।
  • स्थूक कर - राज सेवकों के लिए लिया जाने वाला कर।
  • न्यौंवाली कर - न्याय पाने के लिए दिया गया कर।
  • ज्यूलिया/ सांगा - नदी के पुलों पर लगने वाला कर।
  • सिरती कर - माल भाबर क्षेत्र तथा भोटिया व्यापारियों से वसूला जाता था। यह नगद कर था।
  • बैकर कर - अनाज के रूप में लगने वाला कर था।
  • राखिया कर - इसे रछया भी कहा जाता था जो सावन के महीनें में रक्षाबंधन व जनेउ संस्कार के समय वसूला जाता था।
  • कूत कर - नगद के बदले दिया गया अनाज।
  • मांगा कर - युद्ध के समय लिया जाने वाला कर
  • भाग कर - यह कर घराटों पर लगता था।
  • बजनिया कर - नर्तकों व नर्तकियों के लिए लिया जाने वाला कर।
  • चोपदार कर - यह राजा की व्यक्तिगत वस्तुओं यथा तलवार, ढाल आदि को ढान वालों के लिए लिया जाता था।
  • घोड़ालों कर - घोड़ों के लिए लिया जाने वाला कर।
  • कुकुरयालो - कुत्तों के लिए लिया जाने वाला कर।
  • कमीनवारी/सयानचारी कर - किसानों से लगान वसूल करने वालों व सयानों को देय कर।
  • कनक कर - यह शौका व्यापारियों से स्वर्ण के रूप में लिया जाता था।
  • हिलयानिअधूल - बरसात में सड़कों की मरम्मत के लिए लिया जाता था।
  • तान या टांड कर - सूती या ऊनी वस्त्रों के बुनकरों से लिया गया कर।
  • मिझारी कर - कामगारों पर लगाया जाने वाला कर।
  • रोल्या-देवल्या कर - राजपरिवार के देवी-देवताओं की पूजा के नाम पर लिया जाने वाला कर। बलि या भोजन के लिये बकरे भी लिये जाते थे।
  • मौकर कर - हर परिवार पर लगा हुआ कर।
  • जगरिया कर - जागर लगाने वाले पुजारी ब्राहाणों से लिया जाता था।

चंद राजवंश से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्य (Other Important Facts related to Chand Dynasty)

  • चंद राजाओं द्वारा अपने ताम्र शासनादेशों में प्रयुक्त भाषा नेपाली मिश्रित कुमाउंनी थी।
  • ताम्रपत्रों के लेखक जोशी होते थे।
  • चंद राजा मुख्य रूप से शिव उपासक थे।
  • 1786 ई० में कुछ समय के लिए प्रारम्भिक कत्यूर काल के पश्चात् पहली बार कुमाऊँ और गढ़वाल राज्य एक शासक के अधीन हुआ।
  • 1790 ई० में स्थिति का लाभ उठाकर गोरखा सेना ने कुमाऊँ पर आक्रमण कर दिया। अतः महेन्द्रचंद भागकर कोटाबाग चला गया। इस प्रकार कुमाऊँ से चंद वंश का शासन समाप्त हो गया।
  • कुमाऊँ में घर-घर पूजे जाने वाले गंगनाथ देवता स्वयं चंदवंशी राजकुमार थे। जो साधु बनकर कुमाऊँ आए और यहीं मारे गए।
  • नेपाली भाषा नेवारी व खसकुरी का कुमाऊँनी पर पूरा प्रभाव देखने को मिलता है।
  • चंद वंश का प्रतीक चिन्ह गाय थी। जिसे सिक्कों, झण्डों आदि पर अंकित कराया जाता था।
  • कुमाऊँ में हिलजात्रा, आंठू, देवजात्रा, पुषड़िया, घुरूड़िया, घी त्यार, हरेला, ओल्ग्या आदि सब नेपाली रीति-रिवाज, पर्व व उत्सव हैं।
  • बागेश्वर का शिव मन्दिर मूलतः कत्यूरी राजाओं द्वारा बनाया गया था किन्तु 1602 ई० में इसका जीर्णोद्धार लक्ष्मीचंदक्षकराया था।
  • बैजनाथ के मन्दिरों में लक्ष्मीनारायण का मन्दिर चंदों ने बनवाया था।
  • पिथौरागढ़ में दिडनस, कासनी, मसोली, नकुलेश्वर, चौपाता, डीडीहाट के पास मढ़ का सूर्य मन्दिर, रामेश्वर, केदार आदि मन्दिर भी चंदों ने बनवाये थे।
  • कासनी में पंचायतन प्रकार का मन्दिर आज भी दशनीय है।
  • लक्ष्मीनारायण मन्दिर में सदैव एक नाग निवास करता है।
  • मढ़ के सूर्य मन्दिर के पास एक हथिया देवाल है।
  • कुमाऊँ में गोरिल जिन्हें गोलू देवता के नाम से जाना जाता है का मूल भी नेपाल ही है।
  • सीरा में प्रचलित रौत देवता की पूजा का मूल भी नेपाल ही है।
  • छुरमल, कलसिन, कटारमल, भूमिया, ऐड़ी, सैम आदि जो देवता यहां पूजे जाते हैं उनका मूल भी नेपाल ही है।
  • कपाल में नाक के सिरे से लेकर ऊपर तक पिठां लगाना नेपाल की देन हैं।
  • सौरा से मल्लों का प्राचीनतम अभिलेख 1353 ई. तथा सोर के बर्मों का प्राचीनतम ताम्रपत्रभिलेख 1337 ई. का प्राप्त हुआ है।
  • अशोक चल्ल का गापेश्वर त्रिशूल लेख इनसे भी पुराना 1191 ई- है।
  • रूद्रचंद के बाद लक्ष्मीचंद ने मुगल बादशाहों से मैत्री संबंध स्थापित किए थे।
  • उत्तराखण्ड में पंचायती राज व्यवस्था चंदों के देन है।
  • चंद राजाओं के समय ही कुमाऊं में भूमि के निर्धारण के साथ साथ ग्राम के मुखिया की नियुक्ति की परंपरा शुरू हुयी।
  • चंद राजा अपने नाम के अंत में देव विरूद धारण करते थे।
  • चंदों ने शवदाह स्थल हेतु जागेश्वर को चुना। अतः जागेश्वर चंद वंश का मूल धार्मिक केन्द्र था।
  • चंद वंश की वंशावलियां अल्मोड़ा से प्राप्त हुयी हैं। इसलिये इनको अल्मोड़ा प्रति कहा जाता है।
  • चंद काल में समूचा राज्य प्रशासन दो भागों में विभक्त था- 1 सामंतों के अधीन 2 राजा द्वारा शासित।
  • चंद राजाओं का कुख्यात कारागार सीराकोट में था।
  • बिनसर महादेव मंदिर शिवदेव ने बनाया।
  • जागेश्वर के मंदिर त्रिमलचंद ने बनवाये।

चंद राजाओं द्वारा कुमाऊँ में बनाए प्रमुख किले(Major Forts built by Chand Raja's in Kumaon)

अल्मोड़ा के किले(Forts of Almora)

  • खगमरा किला - अल्मोड़ा स्थित इस किले का निर्माण राजा भीष्मचंद ने कराया था।
  • लालमण्डी किला/फोर्ट मोयरा - इसका निर्माण 1563 में कल्याणचंद ने कराया था।
  • लालमंडी को फोर्टमोयरा का किला ई गार्डनर ने कहा था।
  • मल्ला महल किला - इसे भी कल्याणचंद ने बनवाया था। इसमें वर्तमान में कचहरी, जिलाधीश कार्यालय व अन्य
  • सरकारी दफ्तर हैं।
  • नैथड़ा किला - अल्मोड़ा में स्थित यह किला रामनगर-गनाई मोटर मार्ग पर है। यह गोरखाकालीन माना जाता है।
  • स्यालबुंगा - लक्ष्मीचंद
  • तल्ला महल - उद्योत चंद
  • स्यूनराकोट का किला - अल्मोड़ा
  • लखनपुर का किला - अल्मोड़ा

पिथौरागढ के किले(Forts of Pithoragarh)

  • गोरखा किला - पिथौरागढ
  • सिमलगढ़ किला / लंदन फोर्ट - पिथौरागढ
  • सीराकोट का किला - पिथौरागढ

चंपावत के किले(Forts of Champawat)

  • राजबुंगा किला - चंपावत के राजबुंगा किले का निर्माण राजा सोमचंद ने कराया था।
  • चारान उचार किला - निर्माणकर्ता सोमचंद
  • चंडालकोट का किला - इसे चौंदकोट या चंदकोट का किला भी कहा जाता है।
  • इसका टीला राजबुंगा के सामने उससे भी ऊंचा है।
  • सिरमोही किला - चंपावत के लोहाघाट के सिरमोही गांव में स्थित है।
  • गौल्लचौड़ किला - चंपावत इसका निर्माण राजा गोरिल ने कराया था।
  • बाणासुर किला / कोटालगढ़ का किला चम्पावत जिले में लोहाघाट में देवीधुरा मार्ग से 7 किमी की दूरी से कर्णरायत नामक स्थान पर स्थित है।
  • इस किले की लम्बाई 80 मीटर चौड़ाई 20 मीटर है।
  • इसका निर्माण बाणासूर नामक दैत्य राजा ने कराया था।
  • स्थानीय भाषा में इसे मारकोट कहा जाता है।

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