उत्तराखण्ड वन आंदोलन 1921 (Uttarakhand Forest Movement 1921)
- बेगार की सफलता से प्रेरित बद्रीदत्त पाण्डे ने अपने भाषणों में वनाधिकारों की प्राप्ति के लिए सीधी कार्यवाही की बात कही थी।
- इन्होंने कहा कि वन उत्पादों को बेचने वाली सरकार वास्तविक सरकार नहीं कही जा सकती। वास्तव में इन्हीं इरादों के विरूद्ध गांधी अवतरित हुए हैं। जो बनिया सरकार पर विजय प्राप्त करेंगे।
- कुमाऊँ के जंगलों में आग का व्यापक दौर 1921 से ही आरंभ हो गया था। यह साल, वर्षा की कमी के कारण जबरदस्त सूखे का भी था। तथा इस कारण जंगलों में लगी आग पर काबू पाना एक चुनौती थी। ग्रामीणों के आग बुझाने के असहयोग ने इस चुनौती को अत्यधिक बढ़ा दिया था।
उत्तराखण्ड वन आन्दोलन 1921 - असहयोग के संदर्भ में जनवरी माह में बद्रीदत्त पाण्डे का बागेश्वर में दिया भाषण महत्वपूर्ण है -पहले जब जंगलों में आग लगती थी। तो उससे घास अधिक मात्रा में पैदा होती थी। जिससे गाय, भैंस ज्यादा मात्रा में दूध देते थे। अब आग के संरक्षण में घास दुर्लभ हो गई है। पहले जंगलों की बदौलत टिनों के हिसाब से घी मिलता था। अब टिनों के हिसाब लीसा मिल रहा है अतः जनता वन विभाग के साथ असहयोग की नीति अपनाए।
- इसी कारण अंग्रेजों ने बद्रीदत्त पाण्डे को राजनीतिक जानवर की संज्ञा दी थी।
- 16 फरवरी को सामेश्वर तथा 22 अप्रैल को टोटाशिलिंग के जंगलों में आग आरम्भ हो चुकी थी। इस व्यापक आग को बुझाने में स्थानीय जनता ने सरकार को सहयोग देने से इंकार कर दिया आग लगने की सूचना दूरभाष से 51 नम्बर पर दी जा सकती थी। अंग्रेज इस विद्रोह से बौखला गए थे तथा उनके द्वारा इसके विरूद्ध कड़ी कार्यवाही की गई।
- सरकारी प्रभागों के बाद भी आगजनी की घटनाएं बढ़ती जा रही थी। भवाली में एक संदिग्ध व्यक्ति को गिरफ्तार किया गया था क्योंकि उस व्यक्ति को आगजनी के भिन्न-भिन्न स्थानों पर देखा गया था।
- डायबिल ने बद्रीदत्त पाण्डे पर सरकार के विरूद्ध सीधी कार्यवाही कर विद्रोह भड़काने का आरोप लगाया। उनका यह कहना था कि अपनी मांगे सरकार द्वारा पूरी ना होता देख बोलसेवकों की भांति बीडी पाण्डे सीधी कार्यवाही करते हैं।
- वन आन्दोलन में सिर्फ पुरूषों की ही हिस्सेदारी नहीं थी बल्कि महिलाऐं भी आगे आ रही थी।
- 1921 में सोमेश्वर की दुर्गा देवी को थकलोड़ी के वनों में आग लगाने के जुर्म में एक माह की कैद हुई।
- दुर्गा देवी क्षेत्रीय तथा राष्ट्रीय आन्दोलन में गिरफ्तार होने वाली पहली महिला थी।
- 16 साल का गंगुवा उन अनेक लड़कों में से एक था। जिन्हें आन्दोलनकारियों द्वारा वनों में आग लगाने का कार्य सौंप गया था।
- तल्ला कत्यूर में डोबा के चरनसिंह टंकगणिया तथा अन्य चार ग्रामीणों ने असहयोग आन्दोलनकारियों तथा एक जोग के भाषणों से प्रभावित होकर वनों में आग लगाई।
- 39 वीं गढ़वाल रायफल्स के 4 सैनिक वनाधिकारियों पर हमला करने तथा धमकाने के आरोप में पकड़े गए थे।
- सरकार ने इस चुनौती से निपटने के लिए जनपद अल्मोड़ा में दमन चक्र चलाया गया था।
- बच्चों से बूढ़ों तक को संदेह पर गिरफ्तार किया जाने लगा था।
- मोहन सिंह मेहता के रूप में कुमाऊँ की सर्वप्रथम गिरफ्तारी मार्च में धारा 107 के अंतर्गत हुई थी।
- यह आन्दोलन अल्मोड़ा व नैनीताल में मुख्य रूप से हुआ था।
- वनों के संबंध में दूसरी असंतोष की लहर सविनय अवज्ञा आन्दोलन के साथ उठी थी।
- उस समय गांधीजी तथा अन्य कांग्रेसियों ने जनता से ब्रिटिश प्रशासन की वन संबंधी निरकुंश नीति के खिलाफ अहिंसक विरोध करने की अपील की थी।
- स्थानीय पत्र शक्ति ने लिखा की ब्रिटिश वन नीति में सरकार की इच्छा की सत्यता को परखना नामुनकिन है।
- इसी समय प्रसिद्ध कवि गोर्दा ने वृक्षन को विलाप नामक शीर्षक से कुमाऊँनी कविता लिखी जिसमें वनों की वेदना दर्शाया गया था।
- ग्रामीणों ने अपनी समस्या के विरोध में 1930-31 में पुन: वनों में आग लगा दी।
- इस आन्दोलन का प्रमुख क्षेत्र और प्रेणता स्त्रोत सल्ट था। सल्ट क्षेत्र में जागृति का श्रेय पुरूषोत्तम उपाध्याय और लक्ष्मण सिंह अधिकारी को जाता है।
- 30 नवम्बर 1930 को सल्ट से 404 सत्याग्रहियों का जलूस मोहान की ओर चला पुलिस अधीक्षक ठाकुर सिंह, रानीखेत के एडिशनल मजिस्ट्रेट गोविन्द राम काला ने आन्दोलनकारियों को रोकने प्रयास किया न मानने पर पुलिस ने अहिंसक आन्दोलनकारियों पर लाठीचार्ज किया तथा 58 लोगों को एक छोटे से कमरे में कैद कर लिया गया था।
- नोट- इस घटना की तुलना ब्लैक होल घटना से की जाती है।
- सल्ट के अतिरिक्त अनेक स्थानों पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने वन आन्दोलन का रूप धारण कर लिया था।
- काली कुमाऊँ में आन्दोलन का नेतृत्व हर्षदेव औली ने किया था। इसलिए शक्ति ने हर्षदेव औली को काली कुमाऊँ का मुसोलिनी की संज्ञा देकर इस आन्दोलन में उनके नेतृत्व की सराहना की थी।
वन पंचायत(Van Panchayat)
- जनाक्रोश और आंदोलनात्मक रूप को देखकर सरकार ने 13 अप्रैल 1921 में एक समिति का गठन किया। जिसे फॉरेस्ट ग्रीवेन्स कमेटी कहा जाता है। जिसके अध्यक्ष पर्सी विंढम थे।
- इस समिति का उद्देश्य जनता की शिकायतों का पता लगाना था।
- इस समिति ने अपनी रिपोर्ट अक्टूबर 1921 में सरकार को सौंपी जिसमें समिति ने ग्रामीणों को कुछ अधिकार देने तथा कुछ वनों को उनके लिए खोले जाने की बात कही थी।
- समिति ने बांस तथा कूकाट के वृक्षों पर लगे प्रतिबंधों तथा पशुओं को चराने संबंधी प्रतिबंधों को हटाने का सुझाव दिया था।
- सरकार ने समिति की कई संस्तुतियां स्वीकार कर ली थी।
- समिति की सिफारिश पर आधारित सुविधाएं तथा नए नियम 15 मार्च 1922 से जारी किए गए थे।
- फॉरेस्ट ग्रीवेन्स कमेटी की संस्तुतियों के आधार पर शासन ने सन् 1925 में पर्वतीय क्षेत्र में वन पंचायतों की स्थापना का निर्णय लिया गया था।
- जिसके लिए कैलाश चन्द्र गैरोला को निर्देशित किया गया था।
- 1930 में वन पंचायतों के गठन के लिए फॉरेस्ट कमेटी का गठन किया गया था।
- पंचायती वनों के गठन एवं प्रबंध के लिए 1931 में नियमावली बनाई गई थी।
- 1931 में राज्य में वन पंचायतों का गठन किया गया था।
- 1935-36 में सफल रूप से 156 पंचायतें कार्य करने लगी थी।
- सन् 1930 से नैनीताल, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ व पौड़ी जनपदों में पंचायती वनों की स्थापना की गई थी। और 1932 में चमोली जनपद में वन पंचायतों का गठन किया गया था।
- शक्ति समाचार पत्र ने जनता से जंगलात आन्दोलन जारी रखने का आवाहन किया था।
- शक्ति ने "जंगलात कैसे खुलेगा" शीर्षक से सम्पादकीय में लिखा था।
पर्वतीय कुमाऊँ में प्रसिद्ध वैद्य(Famous Vaidya in hill Kumaon)
वैद्यराज लोकरत्न पंत 'गुमानी'(Vaidyaraj Lokratna Pant 'Gumani')
- गुमानी पंत का जन्म - 1790 ई
- जन्म स्थान- काशीपुर
- इनके पिता का नाम - पण्डित देवनिधि पंत
- इनकी माता का नाम - श्रीमती देवमंजरी
- पितामह का नाम - पण्डित पुरूषोत्तम पंत
- नोट- चंद राजाओं के दरबार में वैद्य थे।
- मोहन पंत द्वारा प्रस्तुत की गई वंशालियों में गुमानी का पूरा नाम लक्ष्मीनंदन पंत था।
- इनके गुरू का नाम परमहंस परिव्राजकाचार्य था।
- गुमानी पंत के पूर्वज उपराड़ा (गंगोलीहाट) नामक ग्राम के मूल निवासी थे।
- गुमानी पंत ने ज्ञान भैषज्य मंजरी सहित कई ग्रन्थों के रचना की थी।
- मोहन चन्द्र पंत (ग्राम वर्षायत पिथौरागढ़) ने पंतों की वंशावली तैयार की है।
- नोट- पुरूख नामक ग्रन्थ की रचना भी मोहन चंद्र पंत ने की।
- मोहन चंद्र पंत की मान्यता के अनुसार आज से लगभग 30 पीढ़ी पहले पण्डित जयदेव पंत महाराष्ट्र के हिम्बरा प्रदेश से चौदवीं सदी के प्रारम्भ में बद्रीनाथ तीर्थ यात्रा हेतु उत्तराखण्ड आए थे।
- हिम्बरा प्रदेश से होने के कारण पंतों को हिमाड़ पंत भी कहा जाता है।
- ये काशीपुर में रह रहे चंदों के वंशज गुमान सिंह और टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में रहे थे।
- इनको लोकरत्न कहा जाता है।
वैद्य गौरीदत्त पाण्डे 'गौर्दा'(Vaidya Gauridutt Pandey 'Gourda')
- जन्म स्थान - देहरादून
- पिता का नाम - जमुनादत्त
- नोट- ये वैद्यक का कार्य करते थे।
- ये मूल रूप से अल्मोड़ा के पटिया ग्राम के निवासी थे।
- पितामाह का नाम - श्री विश्वेश्वर जी
- ये देहरादून में श्री गुरु रामराय जी के तथा राजा लाल सिंह के दरबार में प्रधान वैद्य नियुक्त हुए थे।
- गोर्दा ने अल्मोड़ा के लाला बाजार में संजीवनी अस्पताल खोला था।
रामदत्त पन्त 'कविराज'(Ramdutt Pant 'Kaviraj')
- पर्वतीय कुमाऊँ के वैद्यों में श्री रामदत्त पंत 'कविराज' का नाम प्रमुख है।
- आरम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में होने के पश्चात् कलकत्ता में उन्होंने आयुर्वेद की पढ़ाई की और घर आकर (रानीखेत) वैद्यकी करने लगे थे।
- उन्होंने ए०वी० प्रेस खोला था।
- इनका उपनाम कविराज था।
वैद्य भोला दत्त पाण्डे (Vaidya Bhola dutt Pandey)
- इनका मूल स्थान ताड़ीखेत (अल्मोड़ा) था।
- इनके द्वारा 1948-49 में अल्मोड़ा में वैद्य सम्मेलन आयोजित किया गया था।
- इस सम्मेलन में लोकसभा अध्यक्ष श्री अनन्तशयनम आयंगर द्वारा इन्हें स्वर्ण पदक और आयुर्वेद बृहस्पति सम्मान से सम्मानित किया गया था।
वैद्य अनुप सिंह (Vaidya Anup Singh)
- गेवाड़ घाटी में अपनी वैद्यकी से जन स्वास्थ्य की सेवा करने वाले वैद्य श्री अनूप सिंह भटकोट (रानीखेत) के निवासी थे।
- वैद्य होने के साथ ये स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे थे।
- 1940 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में भाग लेने पर इन्हें डेढ़ वर्ष की कैद हुई थी।
- 1942 में स्वाधीनता आन्दोलन में भाग लेने पर 7 वर्ष का कारावास दिया गया था।
वैद्यराज श्री मोतीराम सनवाल(Vaidyaraj Shri Motiram Sanwal)
- वैद्यराज मोतीराम सनवाल का जन्म 1901 में अल्मोड़ा में हुआ था।
- बोर्ड ऑफ इण्डियन मेडिसन लखनऊ में पंजीकृत वैद्य थे।
- ये अल्मोड़ा में जगदीश फार्मेसी के नाम से वैद्य का कार्य किया करते थे।
वैद्य सीतावर पंत(Vaidya Sitavar Pant)
- इन्होंने 1925 में नैनीताल में 1926 में हल्द्वानी में कैलाश आयुर्वेदिक औषधालय खोला था।
- ये अल्मोड़ा के रहने वाले थे।
माधवानंद लोहनी(Madhavanand Lohani)
- ये अल्मोड़ा के रहने वाले थे।
- इन्होंने 1954 में माधव औषधालय के नाम से हल्द्वानी में स्वयं का दवाखाना खोला था।